17. भक्त धन्ना जी
भक्त धन्ना जी राजस्थान के किसान परिवार से सम्बन्ध्ति थे जिन्हें जाट कबीले के तौर
पर भारतीय समाज में मान्यता प्राप्त है। भाई काहन सिंह नाभा के अनुसार आपका जन्म
टाँक इलाके के गाँव धुआन में 1416 ईस्वी में हुआ। धन्ना जी ने गृहस्थी जीवन व्यतीत
किया और पारिवारिक कार्य खेतीबाड़ी ही अपनाया। एक जाट और दूसरा किसान का जीवन होने
के कारण बारीक चालाकियों से उनकी ज़िन्दगी कोसो दूर थी। कठिन श्रम और परमात्मा से
प्यार, जिन्दगी के दो ही निशाने थे। निर्मल स्वभाव वाले धन्ना परमात्मा की दरगाह
में कबूल हुए। इसका प्रसँग स्थापन गुरू अर्जुन पातशाह अपनी बाणी में इस प्रकार करते
हैं।
धन्नै सेविआ बाल बुधि ।। अंग 1192
भक्त धन्ना जी की बाणी का मुख्य विषय है कि मनुष्य परमात्मा से
जुड़ने के लिए सही रूप में स्वभाव पैदा नहीं करता, इसीलिए वह तृष्णा की आग में जलता
है और जन्म-मरण के भवजल जाल में उलझा रहता है। आपकी बाणी के अनुसार विषय-विकारों के
रस एकत्रित कर मन को जीवन ने इस कद्र भर लिया है कि पैदा करने वाला बिसर गया है।
अगर गुरू मति में ज्ञान का धन भर दे तो प्राप्तियों का मार्ग खुल जाता है और सहज
अवस्था की प्राप्ति होती है। भक्त जी ने अपनी बाणी में स्पष्ट कर दिया है कि मुझे
धरती के आसरे (प्रभु) की प्राप्ति संतो, महापुरूषों की संगत के कारण ही हुई है।
धन्नै धनु पाइआ धरणीधरु मिलि जन संत समानिआ । अंग 487
बाणी कुल जोड़: 3, 2 रागों में