15. भक्त कबीर जी
भक्त कबीर जी शिरोमणी भक्त हुए हैं। उत्तरी भारत को भक्ति के रँग में रँगने वाली इस
पवित्र रूह का जन्म 1398 ईस्वी में हुआ माना जाता है। आपकी परवरिश नीरू नाम के एक
श्रमिक मुसलमान जुलाहा व उसकी पत्नि नीमा द्वारा हुई। कबीर जी के विवाह के बारे में
आपकी रचना का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि आपने गृहस्थ जीवन व्यतीत किया और
आपके घर सँतान भी पैदा हुई। भक्त कबीर जी के जन्म के समय सम्पूर्ण हिन्दुस्तान की
धार्मिक व सामाजिक व्यवस्था दो श्रेणियों में बँटी हुई थी, जिसमें पहली श्रेणी
शोषणकारियों की थी और दूसरी श्रेणी शोषितों की। पहली श्रेणी में राजकर्त्ता व पुजारी
वर्ग आता था और दूसरी श्रेणी में जनसाधारण। भक्त कबीर दूसरी श्रेणी से सम्बन्धित थे
लेकिन उन्हें यह शोषण मन्जूर नहीं था। फलस्वरूप भक्त कबीर जी की आवाज़ एक मनुष्य की
आवाज़ न होकर समूह की आवाज़ हो गई और यह आवाज़ लोक लहर का रूप धारण करके दम्भियों व
पाखण्डियों को नँगा करके लोक मानसिकता में एक नई रूह का आगाज़ करते हुए 1518 ईस्वी
में इस सँसार से कूच कर गई। सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरू नानक पातशाह स्वयँ इस ‘लोक
की आवाज़’ के पास पहुँचे, शाबाश दी और इस आवाज़ को लुप्त होने से बचाकर हमेशा हमेशा
के लिए श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी का हिस्सा बना दिया।
बाणी कुल जोड़: 532, 16 रागों में
प्रमुख बाणियाँ: बावन अखरी, सत वार, थिती