14. भक्त बाणी
मनुष्य के परमात्मा के साथ रागात्मक सम्बन्धों को भक्ति कहा जाता है। भक्त’ शब्द
सँस्कृत भाषा के ‘भज्’ धतु से सम्बन्ध्ति माना जाता है। ‘भज्’ का अर्थ है जपना,
आराधना, पूजना, सेवा, सिमरन व बाँटना आदि। अगर सरल शब्दों में बताना हो तो कहा जा
सकता है कि भक्त जन वह है जो परमात्मा के सिमरन से जुड़कर, समूह कायनात में कादर का
रूप देखता है, उसकी सेवा करता है और बाँट कर खाता है। इसके अतिरिक्त भक्त शब्द को
अक्षरों में विच्छेद करके भी अर्थ किए जाते हैं, जैसे ‘भ’ अक्षर प्रेम भाव से, ‘ग’
अक्षर ज्ञान से व ‘त’ अक्षर त्याग से सम्बन्धित स्वीकार किया गया है और माना यह गया
है कि जिस भी मनुष्य में यह तीन गुण विद्यमान हो, वह भक्त जन है। भक्ति लहर दक्षिण
भारत में आरम्भ हुई। इसका मान आडवार भक्तों को जाता है। उत्तरी भारत में इसका आगमन
मध्य युग में हुआ। भक्तजनों ने असल में एक प्रभु के सँदेश को प्रचलित करते हुए
कर्मकांडी प्रबन्ध को पूरी तरह नकारने की कोशिश की। भक्त, भट्टों तथा अन्य बाणीकारों
की पहचान के लिए जिस भी महापुरूष की बाणी है, उनका नाम भी श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी
में साथ ही दर्ज किया गया है।