SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

12. श्री गुरू अरजन देव साहिब जी

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी का प्रकाश 1563 ईस्वी को श्री गुरू रामदास जी व माता भानी जी के घर श्री गोइँदवाल साहिब जी के स्थान पर हुआ। बचपन में आपको अपने नाना तीसरे गुरू अमरदास जी की गोद में खेलने का मौका प्राप्त हुआ। तीसरे पातशाह ने आपके लिए ‘दोहिता बाणी का बोहिथा’ का उच्चारण करते हुए आने वाले समय की ओर सँकेत कर दिया था। फिर नौजवान अवस्था में आपका विवाह माता गँगा जी से सम्पन्न हुआ। आपके घर एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम श्री (गुरू) हरिगोबिंद साहिब जी रखा गया। 1581 ईस्वी में आप पाँचवे गुरू के रूप में गुरगद्दी पर सुशोभित हुए। आपने गुरू पिता जी के आरम्भ किए कार्यों को हाथ में लिया और सँतोखसर व अमृतसर नाम के सरोवर सम्पूर्ण करके ‘चक्क रामदास’ का नाम ‘श्री अमृतसर साहिब जी’ रख दिया तथा सरोवर के बिल्कुल बीच में ‘श्री हरिमन्दिर साहिब जी’ का निर्माण करके, सिक्खों को उनका केन्द्रीय स्थान अर्पित कर दिया। आप जी ने तरनतारन, हरिगोबिन्दपुर, छेहरटा, करतापुर आदि शहर बसाकर, सिक्खी के प्रचार व प्रसार के कई केन्द्र स्थापित कर दिए। गुरू अरजन पातशाह तक सिक्खी का प्रचार व प्रसार इस हद तक बढ़ चुका था कि समय के हाकम व समकालीन धर्म इस धर्म को लोक लहर के रूप में देखने लगे तथा लोक लहर भी ऐसी जो कि शोषित से स्वतन्त्रता का प्रसँग सृजना कर रही हो। इसका नतीजा यह निकला कि इस लोक लहर के मुखिया बागी करार कर दिए गए और 1606 ईस्वी को गुरू पातशाह पर कई तरह के इल्जाम लगाकर लाहौर में आप जी को शहीद कर दिया गया। आप सिक्ख धर्म के प्रथम शहीद थे।

बाणी रचना: 2312 शब्द, 30 रागों में

प्रमुख बाणियाँ: सुखमनी, बारह माहा, बावन अखरी, गुणवंती, अंजुलीआ, बिरहड़े व 6 वारें: राग गउड़ी, गूजरी, जैतसरी, रामकली, मारू व बसंत राग में।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.