75. माछीवाड़े क्षेत्र से पलायन
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी उच्च के पीर के वेश में शाही सेना को झाँसा देकर लुधियाना
के निकट आलमगीर स्थान पर पहुँचे। आप जी ने यहाँ से गनी खान और नबी खान को बहुत
आदरपूर्वक विदा किया और उनको एक यादगारी पत्र लिखकर दिया, जिसमें उनके द्वारा की गई
अमूल्य सेवा का वर्णन है। आलमगीर क्षेत्र में भाई मनी सिंघ जी का बड़ा भाई नगाहियाँ
सिंघ अपने परिवार सहित आपका स्वागत करने आया और उसने आपकी कई दिन तक सेवा की। यहाँ
पर बहुत से सिक्ख आपकी सेवा में हाजिर हो गये। अब आप शत्रु से प्रभावित क्षेत्र से
दूर जाना चाहते थे जिससे पुनः सिक्खों को सँगठित किया जा सके। इस कार्य के लिए भाई
नगाहियाँ सिंघ जी ने आपको एक सुन्दर घोड़ा भेंट किया। घोड़े पर सवार होकर आप जी अपने
काफिले सहित अपने अनुयाईयों को मिलने के लिए कई गावों का भ्रमण करते हुए रायकोट
पहुँचे। यहाँ का स्थानीय जागीरदार राय कल्ला मुस्लमान होते हुए भी आपका श्रद्धालू
और विश्वासपात्र मित्र था। अतः गुरू जी ने उसके प्रेम को देखते हुए उसके यहाँ ठहर
गये। अब आप शत्रु प्रदेश से बिल्कुल बाहर आ चुके थे, इसलिए आपने आसपास के देहातों
में बसने वाले सिक्खों को सँदेश भेजे और उनको एकत्र होने को कहा। गुरू जी का सँदेश
मिलते ही सिक्खों में खुशी की लहर दौड़ गई और वे लोग गुरू जी के दर्शनों को उमड़ पड़े।
यहीं गरू जी को सूचना मिली कि आपकी माता जी तथा आपके दोनों छोटे साहिबजादों को नवाब
वजीर खान ने बन्दी बना लिया था किन्तु विस्तृत जानकारी का अभाव था। गुरू जी ने राय
कल्ला को कहा कि किसी कुशल व्यक्ति को सरहन्द भेजो जो विस्तारपूर्वक समस्त घटनाक्रमों
का सत्य तथ्यों सहित पता लगाकर जल्दी वापिस आये। चौधरी राय कल्ला ने तुरन्त नूरा
माही नाम के व्यक्ति को सरहन्द भेजा। रायकोट से सरहन्द केवल 15 कोस की दूरी पर था।
अगले दिन सँदेशवाहक माही छोटे साहिबजादें व माता जी की सम्पूर्ण शहीदी की गाथा की
जानकारी लेकर लौट आया।