28. कपाल मोचन
जगाधरी से पाँच कोस उत्तर दिशा की और सढौरा नामक स्थान के समीप कपाल मोचन तीर्थ
स्थल है। यहाँ कीर्तिक पूनम के दिन एक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है। किवदन्तियों
के अनुसार श्री रामचन्द्र जी ने एक दैत्य का सिर काटा था। वह सिर महोदर ऋषि की टाँगों
में चिपक गया। जब उसने इस तीर्थ पर आकर स्नान किया तो कहीं जाकर सिर उसकी टाँग से
पृथक हुआ। सन 1685 में गुरू जी श्री पाउँटा साहिब नगर से मानव कल्याण के लिए यहाँ
पधारे। उन्होंने लोगों को वहाँ कुबुद्धि करते हुये पाया। यहाँ तक कि कपाल मोचन
सरोवर के निकट ही कई व्यक्ति मलमूत्र त्यागने लग जाते थे। जिससे सरोवर की पवित्रता
तो भँग होती ही थी अपितु प्रदुषण के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता
था और हैजा इत्यादि रोग फैलने का भय उत्पन्न हो गया। जब गुरू जी ने कुव्यवस्था देखी
तो वह बहुत चिन्तित हुए। उन्होंने तुरन्त इस पर्यटक स्थल के पर्यावरण को स्वच्छ
बनाने का निर्णय लिया। आपने अपने समस्त शस्त्रधारी सेवको को सरोवर के चारों और
तैनात कर दिया और आदेश दिया कि यदि कोई व्यक्ति यहाँ शौच करता हुआ पाया जाता है तो
उसकी पगड़ी उतारकर दण्ड के रूप में रख ली जाए। सेवकों ने ऐसा ही किया। बहुत से लोग
पकड़े गये, लगभग जिनकी सँख्या सात सौ थी। सभी की पगड़ी अथवा पगड़ी की कीमत अनुसार राशि
वसूल की गई। ऐसा करने से सभी लोग सर्तक हो गये। गुरू जी का ऐसा करने का एकमात्र
उद्देश्य था कि लोगों को सरोवर की पवित्रता का अहसास हो जाए। उन दिनों लगभग सभी लोग
पगड़ी धारण करते थे और पगड़ी व्यक्ति का सम्मान चिन्ह हुआ करता था। पगड़ी का जब्त होना
अर्थात इज्जत खोना माना जाता था। इस प्रकार गुरू जी ने लोगों में जागरूकता लाने के
दृष्टिकोण से कुछ नये नियम बनाये जिससे सदैव पवित्रता अथवा स्वच्छता बनी रहे। यहाँ
से लौटते समय इन पगड़ियों को धुलवाकर कुछ सम्मानित सज्जनों को उपहार स्वरूप भेंट कर
दिया गया।