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1. प्रकाश (जन्म)

  • जन्मः 22 दिसम्बर, 1666
    जन्म स्थानः श्री पटना साहिब जी
    श्री पटना साहिब जी 5 तखतों में से एक है।
    श्री पटना साहिब जी का निर्माण महाराजा रणजीत सिंघ जी ने करवाया था।
    पिता का नामः नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी (शहीद)
    माता का नामः माता गुजरी जी (शहीद)
    दादा जी का नामः छठवें गुरू साहिब श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी
    पड़दादा जी का नामः पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन देव साहिब जी (शहीद)
    पुत्रः 4 पुत्र (चारों ही शहीद)
    पहले पुत्र का नामः साहिबजादा अजीत सिंघ जी
    दुसरे पुत्र का नामः साहिबजादा जुझार सिंघ जी
    तीसरे पुत्र का नामः साहिबजादा जोरावर सिंघ जी
    चौथे पुत्र का नामः साहिबजादा फतह सिंघ जी
    बड़े साहिबजादे, साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ जी चमकौर के युद्ध में शहीद हुए थे।
    छोटे साहिबजादे, साहिबजादा जोरावर सिंघ जी और साहिबजादा फतह सिंघ जी सरंहद में दीवार में चिनकर शहीद किए गए थे।
    मसंद प्रथा का खात्मा श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने किया था।
    बसाए गए नगरः श्री पाऊँटा साहिब जी और श्री गुरू का लाहौर
    प्रथम युद्धः भंगाणी का युद्ध
    भंगाणी का युद्ध कब हुआः 15 अप्रैल 1687 ईस्वी
    भंगाणी का युद्ध किससे हुआः भीमचन्द और पवर्तीय दलों से
    भंगाणी के युद्ध में चरवाहे भी युद्ध करने में अगुआ बन गये थे।
    भंगाणी के युद्ध में एक साधू ने मुख्य पठान को मार गिराया था।
    भंगाणी के युद्ध में एक लालचन्द नामक हलवाई ने भी अमीर खाँ नामक पठान को मार गिराया था।
    भंगाणी के युद्ध में श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी की पुत्री वीरो जी के 4 पुत्रों ने भी भाग लिया था, जिसमें से संगोशाह जी और जीतमल जी ने शहीदी प्राप्त की
    भंगाणी के युद्ध में पीर बुद्धुशाह जी ने भी गुरू जी की और से भाग लिया था और उनके 2 पुत्र भी शहीद हुए थे।
    भंगाणी के युद्ध में गुरू जी की जीत हुई।
    गुरू जी ने होली के त्योहार को हौला-मौहल्ला नाम दिया।
    गुरू जी ने खालसा पँथ की स्थापना की
    खालसा पँथ की स्थापना कब कीः 30 मार्च सन 1699
    खालसा पँथ की स्थापना किस स्थान पर हुईः श्री केशगढ़ साहिब जी, जिसे आनन्दपुर साहिब जी भी कहते हैं
    सबसे पहले अमृतपान करने वाले भाई दया सिंघ जी थे।
    गुरू जी के कवि दरबार में कितने कवि थेः 52
    गुरू जी ने नादौन के युद्ध में राजा भीमचंद की सहायता की थी।
    गुरू जी ने गुलेर के युद्ध में राजा गोपाल की सहायता की थी।
    श्री आनंदपुर साहिब जी की पहली लड़ाई कब हुईः 1700 ईस्वी
    श्री आनंदपुर साहिब जी की पहली लड़ाई किससे हुईः पहाड़ी फौजों से
    श्री आनंदपुर साहिब जी की पहली लड़ाई में किसकी जीत हुईः गुरू जी की
    श्री आनंदपुर साहिब जी की दुसरी लड़ाई कब हुईः 1701 ईस्वी
    श्री आनंदपुर साहिब जी की दुसरी लड़ाई किससे हुईः पहाड़ियों की सयुँक्त फौजों से
    श्री आनंदपुर साहिब जी की दुसरी लड़ाई में किसकी जीत हुईः गुरू जी की
    श्री आनंदपुर साहिब जी की तीसरी लड़ाई कब हुईः 1703 ईस्वी, गुरू जी की जीत हुई।
    श्री आनंदपुर साहिब जी की चौथी लड़ाई कब हुईः मई 1705 ईस्वी
    श्री आनंदपुर साहिब जी की चौथी लड़ाई में कब तब घेरा पड़ा रहाः 6-7 महीने
    श्री आनन्दपुर साहिब जी का कब त्याग कियाः 20 दिसम्बर, सन 1705 ईस्वी
    चमकौर साहिब का युद्ध हुआः 22 दिसम्बर, सन 1705
    सँसार का सबसे अनोखा युद्धः चमकौर की गढ़ी का युद्ध (श्री चमकौर की गढ़ी में केवल गुरू जी को मिलाकर 43 सिक्ख थे और उन्होंने लगभग 10 लाख फौज का सामना किया।)
    माता गुजरी की कहाँ शहीद हुईः ठण्डे बूर्ज में।
    छोटे साहिबजादों को सरहंद में दीवार में चुनकर 13 पौह लगभग 26 दिसम्बर 1705 वाले दिन शहीद किया गया था।
    गुरू जी नांदेड़ में बन्दा सिंघ बहादुर जी से मिले और वह गुरू जी का आदेश पाकर पँजाब की तरफ कूच कर गया था।
    अन्तिम युद्ध कौनसा थाः मुक्तसर का युद्ध
    गुरू जी ने औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुरशाह की युद्ध में सहायता की थी।
    गुरू जी ने गुरूबाणी के नए स्वरूप की सम्पादना श्री लिखानसर साहिब में की थी, जो कि श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो में है और जो 5 तखतों में से एक है।
    गुरूबाणी की नई प्रति को भाई मनी सिंघ जी ने लिखा।
    गुरूबाणी की नई प्रति की अंग संख्या 1430 हो गई और इसमें नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की बाणी भी शामिल की गई थी।
    गुरू जी ने जोती-जोत समाने से पहले (गुरूबाणी) श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी को गुरू पद सौंप दिया और कहा कि आज से देहधारी गुरू नहीं होगा।

साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी का प्रकाश (जन्म) 22 दिसम्बर सन 1666 ईस्वी को बिहार प्राँत की राजधानी पटना साहिब जी में माता गुजरी की कोख से, पिता श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के गृह में हुआ। पँजाब में जिले सरहन्द के ग्राम घुड़ाम में एक सूफी फकीर भीखन शाह जी एक दिन अर्धरात्रि के समय प्रभु चरणों में ध्यान मग्न थे तो उस समय उन्हें आभास हुआ कि प्रभु से दिव्य ज्योति प्राप्त करके एक महान विभूति मानव रूप धारण करके प्रकाशमान हो रही है। उन्होंने तुरन्त ज्योतिपूँज की ओर सजदा किया और तत्काल निर्णय लिया कि वह उस बाल गोबिन्द रूप पराक्रमी के दर्शन करने चलेंगे। प्रातःकाल जब उनके मुरीदों ने उनसे प्रश्न कियाः हे पीर जी आपने अर्धरात्रि को सजदा प्रथा के अनुसार पश्चिम दिशा की ओर नही बल्कि उसके विपरीत पूर्व दिशा में किया है ऐसा क्यों ? उत्तर में पीर जी ने कहाः जिस शक्ति की मैं अराधना करता हूं वह स्वयँ मानव रूप में इस पृथ्वी पर प्रकाशमान हो रही थी तो मुझे उनकी और सजदा करना ही था। मुरीदों की जिज्ञासा बढ़ी उन्होंने पीर से अनुरोध कियाः कि उन्हें भी उस बाल गोबिन्द के दर्शन करवाए। बस फिर क्या था पीर जी ने अपनी दिव्य दुष्टि से उस स्थान का पता लगाया और मुरीदों को लेकर पटना साहिब की तरफ प्रस्थान कर गये। जब वे लोग पटना साहिब पहुंचे तो बाल गोबिन्द लगभग एक माह से अधिक के हो चुके थे। पीर जी ने श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के परिवार को सन्देश भेजा कि वह पँजाब से बाल गोबिन्द के दीदार करने आया है अतः उसे दीदार करवाये जायें। गुरू जी के संबंधी मामा कृपालचन्द जी ने शँका प्रकट की। और कह भेजाः सर्दी बहुत है बाल गोबिन्द अभी छोटा है, घर से बाहर लाना कठिन है। किन्तु भीखन शाह जी ने कहाः  कि वे तो दीदार के भूखे हैं जब तक उन्हें बाल गोबिन्द जी के दीदार नहीं होते तब तक वे अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे। इस पर कुपालचन्द जी ने माता नानकी जी को फकीर जी की हठधर्मी की बात बताई और विचार के पश्चात अगले दिन के लिए आने को कहा। इसी बीच सूफी फकीर भीखन शाह ने यह जानने के लिए कि शिशु गुरू गोबिन्द सिंघ हिन्दु सम्प्रदाय का पक्षधर होगा अथवा मुस्लिम सम्प्रदाय का। इस बात की परीक्षा लेने के लिए उसने दो कुल्हड़ लिए, एक में दुध और दुसरे में पानी। अगर बालक गोबिन्द सिंह दुध वाले कुल्हड़ पर हाथ रखता है, तो हिन्दु और यदि पानी वाले कुल्हड़ पर हाथ रखता है तो मुस्लमान सम्प्रदाय का पक्षधर होगा। अगले दिन वह बाल गोबिन्द के दर्शनों को पहुँचे तो मामा कृपाल चन्द जी ने उनको बाल गोबिन्द के दर्शन करवाए। बाल गोबिन्द जी ने तुरन्त कम्बल से दोनों हाथ निकालकर दोनों कुल्हड़ों पर रख दिये। इसका अर्थ यह मानवता का पक्षधर होगा और उसके लिए सम्प्रदायों का कोई महत्व नहीं होगा और वे वापिस लौट गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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