9. गडरीये बुडन को दीर्घ आयु (कीरतपुर,
पँजाब)
श्री गुरू नानक देव जी ने अपने प्रवचनों से बिलासपुर नरेश तथा
जनता का मन जीतकर और उनको एकीश्वर की उपासना में लगाकर आगे प्रस्थान की आज्ञा ली और
वहाँ से कीरतपुर क्षेत्र में पहुँचे। वहाँ पर जाकर बसती के बाहर ही आप जी अपने
चरागाह में नित्य कर्म अनुसार, कीर्तन में लीन हो गए। इतने में वहाँ पर भगवान का एक
भक्त गडरिया युवक अपनी भेड़ों को चराता हुआ पहुँचा। जिसको लोग प्यार से बुढ्ढन कहते
थे। बुढ्ढन ने गुरुदेव को जब एक निर्जन स्थान पर कीर्तन करते हुए व्यस्त देखा तो उसे
बहुत आश्चर्य हुआ। क्योंकि उसने बुढ्ढन से पहले किसी को, निर्जन स्थल पर प्रभु
स्तुति करते देखा नहीं था। उसने प्रायः संन्यासियों को बस्तियों में ही गाते सुना
था। उसने गुरुदेव को पीने के लिए दूध प्रस्तुत किया और कीर्तन श्रवण करने बैठ गया।
कीर्तन से वह आँनद विभोर हो उठा, जिससे उसकी तृष्णाएँ शाँत हो गई। गुरुदेव गायन कर
रहे थे:
अंम्रित काइआ रहै सुखाली बाजी इहु संसारो ।।
लबु लोभु मुचु कूडु कमावहि बहुतु उठावहि भारो ।।
तूं काइआ ! मै रुलदी देखी जिउ धर उपरि छारो ।।
सुणि सुणि सिख हमारी ।। राग गउड़ी, अंग 154
अर्थः हे शरीर ! हे काया ! तूँ अमर होने का ख्याल करके आराम से
रहती है। पर यह जगत तो एक खेल है। तूँ लालच, लोभ और झूठ बोल-बोलकर व्यर्थ ही कार्य
कर रही है और फालतू का भार उठा रही है अर्थात व्यर्थ ही भाग-दौड़ कर रही है। हे शरीर
मैनें तेरे जैसे कई मिटटी में मिलते हुए देखे हैं, जैसे धरती पर राख होती है। मेरी
सीख मानकर, कान लगाकर ध्यान से सुन। नेक किए गए कार्य ही तेरे साथ जाएँगे। शब्द की
समाप्ति पर युवक बुढ्ढन ने गुरुदेव से प्रश्न किया, हे पीर जी ! मैं इस काया को कैसे
सफल कर सकता हूँ ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा, भाई ! मनुष्य को प्रत्येक क्षण बन्दगी
में रहना चाहिए। उससे जीवन सफल हो जायेगा। इस पर बुढ्ढन कहने लगा, मनुष्य की आयु
बहुत कम होती है। अधिकाँश समय तो धँधे में व्यर्थ चला जाता है। भजन बन्दगी के लिए
तो दीर्घ आयु होनी चाहिए। अतः मुझे दीर्घ आयु की कामना है। गुरुदेव कहने लगे, यदि
बन्दगी के लिए दीर्घ आयु की इच्छा है तो अल्लाह ने चाहा तो वह भी पूर्ण होगी।
गुरुदेव उसके स्नेह के कारण कुछ दिन उसके गाँव में ठहरे और भजन बन्दगी का अभ्यास
दृढ़ करवाया। आप जब आगे प्रस्थान के लिए तैयार हुए तो गुरुदेव को विदा करने को
बुढ्ढन सहमत न हुआ, वह ज़िद करने लगा, मैं तो आपको नित्य प्रति दूध पिलाकर सेवा करना
चाहता है। इस पर गुरुदेव ने कहा, ठीक है हम आपकी यह सेवा स्वीकार करते हैं, परन्तु
अभी नहीं आप हमारी प्रतीक्षा करें। हम अपने छटवें स्वरूप, शरीर में आपके पास फिर
आयेंगे। उस वक्त आप अपनी इच्छा पूर्ण कर लेना। यह सुनकर बुढ्ढन कहने लगा, हे पीर जी
! इसका अर्थ यह हुआ कि मैं बहुत लम्बे समय तक जीवत रहूँगा। उत्तर में गुरुदेव ने कहा,
आपने प्रभु आराधना के लिए दीर्घ आयु की कामना की है, अतः वह पूर्ण होगी। इसलिए हम
आपकी भक्ति पूर्ण होने पर पुनः मिलने के लिए अवश्य ही आयेंगे। (नोट: छटवीं पातशाही,
गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी ने अपने लड़के बाबा गुरदिता जी को बुढ्ढन शाह फकीर के पास
भेजकर उसको दीदार दिये तथा उससे सेवा में दूध पीकर कृतार्थ किया। उसकी मृत्यु के
पश्चात् उन्होंने अपने हाथों से उसका अन्तिम सँस्कार किया तथा वहाँ पर कीरतपुर के
नाम से एक नगर बसाया)।