5. मन हाथी, गुरू शब्द रूपी अँकुश (मनीकरण,
हिमाचल)
श्री गुरू नानक देव जी कुल्लू नगर से मनीकरण पहुँचे और वहाँ पर
प्रकृति के अद्भुत करिश्मे देखे। इस क्षेत्र में पानी के पाँच कुँड हैं। जिनमें एक
से अति गर्म जल भूगर्भी कारणों से एक ही गति से प्रवाहित हो रहा है। वहाँ से सात
कोस दूरी पर एक अन्य कुँड है, जिसको गँगा कुँड कहते हैं। वहाँ पर दूधिया रँग का जल,
कच्ची लस्सी के स्वाद जैसा है। इन कुँडों के बारे में बहुत सी किंवदन्तियाँ प्रचलित
हैं। गुरुदेव ने इस घाटी में प्रभु स्तुति करते हुये कीर्तन एवँ प्रवचन किया:
तूं करता पुरखु अगंम है आपि स्रिसटि उपाती ।।
रंग परंग उपारजना बहु बहु बिधि भाती ।।
तूं जाणहि जिनि उपाईऐ सभु खेलु तुमाती ।। 2 ।। राग माझ, अंग 138
अर्थः हे परमात्मा आप सर्वशक्तिमान और पहुँच से परे हो और केवल
आपने ही इस सारी सृष्टि की रचना की है। आपने खरे और बहुत तरीकों से यह रचना, अनेको
रँगतों और विचित्र किस्मों से रची है। केवल तूँ ही है, जिसने यह रचना साजी है, रची
है और इसे तूँ ही समझता है। यह सारा खेल आपका ही है। बहुत से तीर्थ यात्री कीर्तन
सुनकर आपके पास आ बैठे। इनमें से कुछ सँन्यासी भी थे जो कि गुरुदेव के कीर्तन से
बहुत प्रभावित हुए। उनमें से एक ने आपको पूर्ण पुरुष जानकर अपनी कुछ समस्याएँ आपके
समक्ष रखी और कहा, मन पर विजय कैसे पाई जाए ? इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा:
मनु कुंचरु काइआ उदिआनै ।।
गुरु अंकसु सचु सबदु नीसानै ।। राग गउड़ी, अंग 221
गुरुदेव ने अपने प्रवचनो में कहा, मनुष्य का मन हाथी के समान
चँचल है। जिस प्रकार महावत के अँकुश से विशालकाय हाथी नियमबद्ध जीवन जीता है, ठीक
इसी प्रकार मन पर नियन्त्रण करने के लिए पूर्ण गुरू की दीक्षा अर्थात उनके उपदेशों
का सहारा लेना पड़ता है। तभी दूसरे सँन्यासी ने पूछा, प्रभु से मिलन किस विधि से हो
सकता है ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा:
आतम महि रामु, राम महि आतमु, चीनसि गुर बीचारा ।।
अंम्रित बाणी सबदि पछाणी दुख काटै हउ मारा ।। राग भैरउ, अंग 1153
प्रभु को बाहर ढूँढने की आवश्यकता नहीं। क्योंकि आत्मा तो राम
का ही अँश है। उसे तो अपने अंतःकर्ण में झाँकने से ही देखा जा सकता है किन्तु इसके
लिए, पूर्ण पुरुष द्वारा दिये गये मार्गदर्शन पर, आचरण को उज्ज्वल करने के पश्चात्
ही प्रभु का ज्ञान होगा। अतः उसको पाने की दृढ़ता मन, वचन तथा आचरण से होनी चाहिये।