3. शेख ब्रह्म जी (पाकपटन, प0 पँजाब)
श्री गुरू नानक देव जी दीपालपुर से पाकपटन पहुँचे। वहाँ पर सूफी
फ़कीर बाबा फ़रीद जी, जो बारहवीं शताब्दी में हुए हैं, उनका आश्रम था। उन दिनों उनकी
गद्दी पर उनके ग्यारहवें उत्तराधिकारी शेख़-ब्रह्म जी बिराजमान थे। गुरुदेव ने नगर
की चौपाल में भाई मरदाना जी को कीर्तन प्रारम्भ करने को कहा। कीर्तन की मधुरता के
कारण बहुत से श्रोतागण इकट्ठे हो गए। गुरुदेव ने शब्द उच्चारण किया:
आपे पटी कलम आपि उपरि लेखु भि तूं ।।
एको कहीए नानका दूजा काहे कूं ।। राग मलार, अंग 1291
अर्थ: हे प्रभू तूँ आप ही पट्टी है, आप ही कलम है, पट्टी के ऊपर
सिफत-सलाह का लेख भी तूँ ही है। हे नानक सिफत-सलाह करने, करवाने वाला तो केवल
परमात्मा ही है और कोई कैसे हो सकता है (सिफत-सलाह यानि परमात्मा की तारीफ के शब्द
या बाणी) भीड़ को देखकर शेख ब्रह्म जी का एक मुरीद भी वहाँ पहुँच गया। उसने गुरुदेव
के कलाम को सुनकर, समझने और विचारने लगा कि यह महापुरुष कोई अनुभवी ज्ञानी है। इनकी
बाणी का भी तत्वसार उनके प्रथम मुरशद फ़रीद जी की बाणी से मिलता है, कि प्रभु केवल
एक है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। जहां-तहां सब कुछ उसीका प्रसार है। जब वह वापिस
आश्रम में पहुँचा तो उसने यह बात शेख-ब्रह्म जी को बताई कि उनके नगर में कोई
पूर्ण-पुरुष आए हुए हैं जो कि गाकर अपना कलाम पढ़ते हैं, जिसका भावार्थ अपने मुरशद
फरीद जी के कलाम से मेल खाता है। यह जानकारी पाते ही शेख बह्म जी रह नहीं पाए, वह
स्वयँ दीदार करने की इच्छा लेकर आश्रम से नगर में पहुँचे। गुरुदेव द्वारा गायन किया
गया कलाम उन्होंने बहुत ध्यान से सुना और बहुत प्रसन्न हुए तथा गुरुदेव से अपनी
शँकाओं का समाधन पाने के लिए कुछ प्रश्न करने लगे। प्रश्न: इस मानव समाज में
बुद्धिजीवी कौन-कौन हैं ? गुरुदेव जी ने उत्तर दिया: जो व्यक्ति मन से त्यागी हो
परन्तु आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का भोग करे। दूसरा प्रश्न था: सबसे बडा व्यक्ति कौन
है ? गुरुदेव ने उत्तर दिया: जो सुख-दुख में एक सम रहे कभी भी विचलित न हो। उनका
अगला प्रश्न था: सबसे समृद्धि प्राप्त कौन व्यक्ति है ? इस के उत्तर में गुरुदेव ने
कहा: कि वह व्यक्ति जो तृष्णाओं पर विजय प्राप्त करके सन्तोषी जीवन व्यतीत करे। उनका
अन्तिम प्रश्न था: ‘दीन-दुखी कौन है ?’ इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा: जो आशा और
तृष्णा की पूर्ति के लिए दर-दर भटके। तत्पश्चात् गुरुदेव से शेख ब्रह्म जी के
अनुयायी कमाल ने प्रश्न किया: कि हमें सम्मान किस युक्ति से मिल सकता है ? तो
गुरुदेव ने उत्तर दिया: दीन-दुखियों की निष्काम सेवा करने से आदर मान प्राप्त होगा।
उनका दूसरा प्रश्न था: हम सबके मित्र किस प्रकार बन सकते है ? उत्तर में गुरुदेव ने
कहा: अभिमान त्यागकर, मीठी बाणी बोलो। गुरुदेव कुछ दिन शेख ब्रह्म जी के अनुरोध पर
उनके पास पाकपटन में रहे। गुरुदेव वहाँ प्रतिदिन सुबह-शाम कीर्तन करते, अपनी बाणी
उनको सुनाते तथा शेख फरीद जी की बाणी उनसे सुनते। गुरुदेव ने इस प्रकार बाणी का
आदान-प्रदान किया तथा वहाँ से शेख़ फ़रीद जी की बाणी सँग्रह करके अपनी पोथी में
सँकलित की। विदा करते समय शेख़ ब्रह्म जी ने गुरुदेव से प्रार्थना की, कि मुझे ऐसी
कैंची प्रदान करें जिससे मेरा आवागमन का रस्सा कट जाए। इस के उत्तर में गुरुदेव ने
कहा सच की कैंची सारे बन्धन काट देती है।
सच की काती सचु सभ सारु ।।
घाड़त तिस की उपर अपार ।। राग रामकली, अंग 956
अर्थ: अगर प्रभू के नाम की कैंची या छूरी हो और प्रभू का नाम का
ही उसमें सारा का सारा लोहा हो तो उस छूरी या कैंची की बनावट बहुत सुन्दर होती है।