5. विवाह
आपके बड़े भाई सूरजमल का विवाह करतारपुर मे सम्पन्न हुआ था। वहाँ के सिक्ख परिवारों
की दृष्टि में श्री त्यागमल जी भी बहुत योग्य और सुन्दर पुरूष के रूप में एक सितारे
के रूप में उभर रहे थे, स्वाभाविक ही था कि वहाँ के एक परम भक्त श्री लालचन्द जी ने
गुरूदेव श्री हरिगोबिन्द जी से अनुरोध किया कि वे अपने सुपुत्र श्री त्यागमल के लिए
उनकी सुपुत्री कुमारी गुजर कौर का रिश्ता स्वीकार करे। गुरूदेव जी ने भक्त का
अनुरोध तुरन्त स्वीकार कर लिया। मार्च, 1632 (15 आश्विन संवत 1686) में बाबा
त्यागमल (तेग बहादुर) जी दुल्हा बने। ऊँचे कँधे लम्बी भुजाओं, चौड़ी छाती, हल्की सी
लाली भरी आँखे, बड़ी डील-डौल वाले और सुशील किशोर अवस्था के दुल्हे को देखकर, स्त्री
पुरूषों की आँखे थकती न थी। इस प्रकार करतारपुर में बड़ी धूमधाम से विवाह की रसम हुई।
दुल्हा और दुल्हन की सुन्दर जोड़ी ऐसी फब रही थी, मानो विद्याता ने उन्हें बहुत सोच
समझकर धरती पर भेजा है। भाई लालचन्द ने अपनी हैसियत से अधिक सबकी आवभगत की। किन्तु
बारात की विदायगी के समय एक विनम्र पिता की भान्ति उन्होंने छठवें गुरू साहिब जी से
कहा– ‘मैं आपकी कुछ भी सेवा नहीं कर सका’ इस पर गुरूदेव जी का उत्तर था,’ जिसने बेटी
दे दी। उसने सब कुछ दे दिया। कुछ भी तो आपने अपने पास नहीं रखा।