4. युद्धकला का
अनुभव
बालक त्यागमल जी लगभग 6 वर्ष के थे तो उन दिनों उनकी बड़ी बहन कुमारी वीरों जी का
शुभ विवाह रचा गया कि तभी अकस्मात् एक दुखान्त घटना घटित हुई। मुगल प्रशासक कुलीज
खान ने एक बाज़ पक्षी को लेकर सिक्खों के साथ झगड़ा कर लिया। इस झगड़े को चुनौती मानकर
मुगल सेना ने श्री अमृतसर साहिब जी पर आक्रमण कर दिया। उस युद्ध के कुछ दृश्य बालक
त्यागमल जी ने अपनी आँखों से देखे। जब योद्धा ढाल और तलवार सजाए, जयकारा लगाते हुए
शत्रु पर टूट पड़े थे और सभी ओर जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल की ध्वनि गूँज रही
थी। तभी त्यागमल जी की आँखों में रण में जूझने की चमक आ गई थी, किन्तु गुरूदेव का
आदेश आ गया कि परिवार को झबाल गाँव पहुँचाया जाए। इस प्रकार आप जब नौ वर्ष के हुए
तो आपके पिता श्री गुरू हरिगोविन्द जी को एक और युद्ध हरिगोविन्दपुर नामक स्थान पर
लड़ना पड़ा। इस लड़ाई का सबसे बड़ा कौतुक यह था कि जब आपकी मीरी की तलवार लड़ते लड़ते टूट
गई तो आपने पीरी (आत्मिक) की तलवार से विरोधी सरदार, अब्दुल्ला खान को मारना उचित
नहीं समझा। अतः उसको अपने हाथों से ही पटककर ऐसा मारा कि अब्दुल्ला के प्राण पँखेरू
उड़ गये। ऐसे वीरता भरे दृश्य भी त्यागमल जी अपनी आँखों से देख रहे थे।
जब त्यागमल जी दस वर्ष के हुए तो उन दिनों में भाई बिधीचन्द दो
घोड़ों को मुगल हाक्मों के कब्जे से युक्ति से निकाल लाये। इस रहस्य के प्रकट होने
पर ललाबेग व कमरबेग ने विशाल मुगल सेना लेकर गुरूदेव पर आक्रमण कर दिया। नथाना और
महराज स्थानों के बीच दोनों दलों का घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में दोनों ओर से
बहुत बड़ी सँख्या मे योद्धाओं ने वीरगति पाई। यहाँ भी तलवार का जादू सिर चढ़कर बोला
और मुगल सेना के छक्के छूट गये। यह सब कुछ त्यागमल जी अनुभव कर रहे थे। जब श्री
त्यागमल जी 14 वर्ष के लगभग थे तो उन दिनों श्री गुरू हरिगोविन्द साहब करतारपुर
निवास कर रहे थे। श्री गुरू हरिगोविन्द जी ने पैंदे खान नामक पठान को सुडौल और
बलशाली पुरूष जानकर शस्त्रत विद्या दी थी और उसे अपनी सेना में एक उच्च पद दिया था
किन्तु समय के अन्तराल में पैंदेखान अपने दामाद उस्मान खान के बहकावे में आ गया और
उसने गद्दारी करके मुगल सेना लेकर गुरूदेव पर आक्रमण कर दिया। मुगल सेना की एक
दूसरी टुकड़ी का काले खान नेतृत्त्व करते हुए सिक्ख सेना को घेरे में ले रहा था। तभी
सिक्ख सेना का नेतूत्त्व गुरूदेव के ज्येष्ठ पुत्र श्री गुरदित्ता जी ने सम्भाला और
दूसरी तरफ भाई बिधि चन्द व अन्य सिक्ख गुरूदेव के नेतृत्त्व में रणक्षेत्र में
जूझने निकल पड़े थे। इसी युद्ध में त्यागमल जी ने भी सक्रिय भाग लिया और तलवार के
खूब जौहर दिखाए। आपने युद्ध क्षेत्र में अनेक मुग़ल सिपाहियों को मौत के घाट उतार
दिया। जिसे देखकर आपके पिता कह उठे कि यह बेटा तो तलवार का धनी है, अर्थात तेग़
चलाने में भी महारत रखता है। अतः आपने बेटे को नया नाम दिया और कहा कि अब यह
त्यागमल नहीं, तेग बहादर है। उस दिन से त्यागमल का नाम तेगबहादुर हो गया। यही नाम
कालान्तर में सार्थक सिद्ध हुआ।