33. औरँगजेब द्वारा कत्ल करने की घमकी
अन्त में औरँगजेब ने गुरूदेव के समक्ष इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा और कहा
कि कि यदि वे इस्लाम स्वीकार कर लेते है तो वह सब उनके मुरीद बन जायेंगे। अन्यथा वह,
उनकी हत्या करवा देगा। इसके उत्तर में गुरूदेव ने फरमायाः उनको किसी प्रकार का भय
नहीं, क्योंकि शरीर तो नश्वर है, उसका क्या मोह ! मृत्यु तो एक अटल सच्चाई हैं। अतः
जन्म-मरण सब एक खेल मात्र हैं। इस पर मुल्लाओं ने कहाः यदि वे कोई करामात दिखाते
हैं। तो मृत्यु दण्ड बखशा जा सकता है। उत्तर में गुरूदेव ने कहाः वे प्रकृति के
कार्यो में हस्तेक्षप नहीं करते अतः चमत्कारी शक्तियों का प्रदर्शन एक मदारी की तरह
नहीं करते। दरअसल औरँगजेब का विचार था कि यदि वह गुरू जी को इस्लाम कबूल करवा लेते
हैं, तो बाकी सारे हिन्दू अपने आप इस्लाम कबूल कर लेंगे। औरँगजेब का मूल लक्ष्य तो
गुरूदेव को इस्लाम स्वीकार करवाना था न कि उनकी हत्या करवाना अतः वह उनको यातनाएँ
देने का कार्यक्रम तैयार करने लगा जिससे पीड़ित होकर वह स्वयँ ही इस्लाम स्वीकार कर
लें। इस प्रकार उसने गुरूदेव तथा उनके साथ तीन सिक्खों को कारावास में विशेष काल
कोठड़ियों में बन्दी बनाकर रखा। जहाँ उनको भूखा-प्यासा रखा जाने लगा। यह समाचार कारावास के सफाई
कर्मचारी द्वारा बाहर के सर्म्पक रखने वाले सिक्खों को प्राप्त हुआ तो उन्होंने
स्थानीय सिक्खों को यह बात बताई। उन सिक्खों ने मिलकर गुरूदेव के लिए लँगर, भोजन
तैयार किया और प्रार्थना की कि गुरूदेव आप समर्थ है कृप्या उनका प्रसाद स्वीकार करें।
प्रार्थना समाप्त होने पर गुरूदेव तथा अन्य शिष्य उनके द्वार पर खड़े थे। उन सिक्खों
ने जी भर के गुरूदेव की सेवा की। निकट ही मौलवी का घर था यह सूचना जब मौलवी को मिली
कि श्री गुरू तेगबहादर साहिब जी पड़ोसी सिक्खों के यहाँ भोजन कर रहे है तो वह स्वयँ
देखने आया और देखकर औरँगज़ेब को सूचित किया कि बन्दीखाने की व्यवस्था ठीक नहीं हैं
उस पर ध्यान दो। परन्तु जाँच-पड़ताल पर गुरूदेव तथा अन्य शिष्य वहीं पाये गये। इस पर
प्रशासन की ओर से और अधिक कड़ाई की जाने लगी। औरँगजेब के आदेश से एक विशेष प्रकार का
पिंजरा मँगवाया गया। जिसकी नोकीली सलाखे अन्दर को मुड़ी हुई थी। इसमें कैदी हिलडुल
नहीं सकता था क्योंकि सलाखों की नोक कैदी के शरीर को भेदती थी। अब इसी पिंजरे में
गुरूदेव को बन्द कर दिया गया। जिससे गुरूदेव के शरीर पर बहुत से घाव हो गये। वहाँ
के सँतरियों को आदेश दिया गया कि उन घावों पर पिसा हुऐ नमक का छिड़काव किया जाए।
जिससे कैदी को जलन हो और वह पीड़ा के कष्ट को न सहन कर पाएँ किन्तु गुरूदेव
शान्तचिंत अडोल थे। इस प्रकार की यातनाएँ देखकर वहाँ पर तीनों कैदी सिक्ख मन ही मन
बहुत दुखी हो रहे थे। उन्होंने प्रार्थना की कि हे प्रभु उन्हें बल दो कि आत्याचार
के विरूद्ध कुछ कर सकें। अगले दिन सफाई कर्मचारी गुरूदेव के लिए भेंट के रूप में एक
गन्ना लेकर आया। गुरूदेव ने उसके स्नेह के कारण वह गन्ना दाँतो से छीलकर सेवन किया
और छिलके वहीं पिंजरे के बाहर फेंक दिये जिन्हें उठाकर उन छिलको को पुनः उन सिक्खों
ने प्रसाद रूप में सेवन किया। जो पिंजरे के बाहर वहीं कैद थे। सीत प्रसाद सेवन के
तुरन्त बाद वे सिक्ख अपने आप में अथाह आत्मिक बल का अनुभव करने लगे। तभी उन्होंने
आपस में विचार विमर्श कर गुरूदेव से प्रार्थना की कि यदि वे स्वयँ उस आत्याचारी
शासन के विरूद्ध कुछ नहीं करना चाहते तो कृप्या उन्हें आज्ञा प्रदान करें वे आत्मबल
से अत्याचारियों का विनाश कर डालें। यह सुनकर गुरूदेव मुस्कराए ओर पूछने लगे यह
आत्मबल उनमें कहाँ से आया है। उत्तर में सिक्खों ने बताया कि उनके सीत प्रसाद सेवन
करने मात्र से वह सिद्धि प्राप्त हुई हैं। इस पर उन्होंने कहा अच्छा निकट आकर
आर्शीवाद प्राप्त करों। जैसे ही उन्होंने निकट होकर मस्तिष्क झुकाया गुरूदेव ने उनके
सिर पर हाथ धरकर उनको दिव्य दृष्टि प्रदान की। उस समय सिक्खों ने अनुभव किया
गुरूदेव अन्नत शक्तियों के स्वामी विशाल समर्था वाले पहाड़ की तरह अडोल प्रभु आदेश
की प्रतिक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तत्पर खड़े है। यह दृश्य देखकर
वे गुरूदेव से क्षमा याचना करने लगे कि वे तुच्छ प्राणी उनकी कला को पहिचान नहीं
पाये और विचलित होकर मनमानी करने की अवज्ञा करने लगे थे। यह सब कुछ वहाँ पर खड़े
सँतरी और दरोगा इत्यादि लोग सुन रहे थे उन्होंने इस घटना का विवरण औरँगज़ेब तक पहुँचा
दिया। औरँगज़ेब ने उन तीनों सिक्खों को अगले दिन दरबार में बुलवाया और उस घटना की
सच्चाई जानी और कहा कि वे लोग इस्लाम स्वीकार कर ले नहीं तो अपने कथन अनुसार विनाश
करके दिखाओं। नहीं तो मौत के लिए तैयार हो जाओं। सिक्खों ने उत्तर दिया कि उन्होंने
तो गुरूदेव से आज्ञा माँगी थी किन्तु उन्होंने आज्ञा दी नहीं अन्यथा वे कुछ भी करने
में समर्थ है किन्तु अब वे मृत्यूदण्ड के लिए तैयार हैं। इस पर सम्राट ने उन तीनों
को अलग-अलग विधि से मौत के घाट उतारने का आदेश दिया।