3. प्रारम्भिक शिक्षा
श्री त्यागमल जी की प्रारम्भिक शिक्षा श्री अमृतसर साहिब जी की एक पाठशाला में
आरम्भ हुई। उन दिनों गुरमुखी अक्षरों के ज्ञान के लिए वहाँ पर विशेष व्यवस्था हो
चुकी थी। प्रशासनिक कार्य के लिए फारसी लिपि का प्रयोग होता था। अतः फारसी सीखना भी
बच्चों के लिए अनिवार्य था। बाल गुरू जी की माता नानकी जी बहुत धार्मिक विचारों की
थी। अतः वे उन्हें सदैव महापुरूषों की कहानियाँ सुनाती रहती, जैसे कि लव-कुश, ध्रुव,
प्रहलाद व बाबा रीद इत्यादि, योद्धाओं के किस्से तो वे बहुत चाव से सुनते। ये
वीर-रस की गाथाएँ उनके अबौद्ध मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ गई। माता जी को सद्गुणों की
साक्षात् मूर्ति कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। श्री गुरू तेग बहादर जी में जो
गुण पाये गये, सुशील मधुरभाषी, कृपालु और धर्म पर अडिग, वह सभी गुण उनमें आपकी माता
जी की देन थी। श्री हरिगोबिन्द साहिब जी ने अपने बाल्यकाल में अक्षर ज्ञान बाबा
बुड्ढा जी से प्राप्त किया था, वे चाहते थे कि उनका सुपुत्र त्यागमल भी गुरू दीक्षा
बाबा बुड्ढा जी ही से लें किन्तु बाबा जी उन दिनों बहुत ही व द्धावस्था में थे,
उन्होंने औपचारिकता हेतु बाबा बुड्ढा जी के पैतृक ग्राम रमदास में सुपुत्र त्यागमल
को भेज दिया। वहाँ से दीक्षा लेकर बाबा त्यागमल जी अमृतसर के स्थानीय विद्यालय में
विधिवत् विद्या ग्रहण करने लगे। जैसे ही वे 10 वर्ष के हुए तो पारिवारिक वातावरण के
अनुसार उन्होनें सैनिक शिक्षा भी लेनी प्रारम्भ कर दी। इस कार्य के लिए गुरूदेव जी
ने भाई जेठा जी की नियुक्ति की। आप कीर्तन के रसिया थे। उनके जीवन में सँगीत के
प्रति आकर्षण स्वाभाविक ही था। अतः एक विशेष "रबाबी" सेवक उनको "राग विद्या" में
प्रवीण करता था। गुरूबाणी अध्ययन में भी उनकी विशेष रूचि थी। वे समय मिलते ही भाई
गुरूदास जी के पास पहुँच जाते और उनसे काव्य रचना कला इत्यादि पर ज्ञान प्राप्त करते।