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26. पटना वापसी

श्री गुरू तेग बहादुर साहब जी को पटना में परिवार को छोड़कर आये हुए लगभग दो वर्ष हो चुके थे, घर से लगातार सन्देश मिल रहे थे कि आप लौट आओ, आपका बेटा भी दो वर्ष का होने वाला है किन्तु गुरूदेव जहाँ भी पहुँचते वहाँ की स्थानीय संगतों के प्रेम में बँधे आगे बढ़ नहीं पाते थे। इस प्रकार गुरूदेव जी ने निर्णय लिया कि उन सभी स्थानों पर अवश्य ही एक बार जाना है, जहाँ श्री गुरू नानक देव जी सतसंगत अथवा धर्मशाला की स्थापना कर गये थे। समय के अन्तराल के कारण वहाँ पुनः सिक्खी को जीवित करना अनिवार्य भी था। अतः इस कार्य के लिए लम्बे समय की आवश्यकता थी, किन्तु गुरूदेव के समक्ष लक्ष्य था, वह विचार कर रहे थे कि हम नये क्षेत्र में तो सिक्खी फैलाने का कार्य भले ही नहीं कर पायें, किन्तु जहाँ जहाँ पहले से ही गुरू नानक देव जी द्वारा प्रयास किया हुआ है, वहाँ जाना ही चाहिए। आप जी ने घर पर संदेश भेज दिया कि जहाँ दो वर्ष व्यतीत हो गये हैं, वहाँ छः माह और प्रतीक्षा करें क्योंकि दूर-दराज के क्षेत्र में पुनः आने का कार्यक्रम असम्भव होता है। आपने ढाका छोड़ते समय प्रचार का लक्ष्य जगन्नाथपुरी को बनाया और काफिले को लेकर चल पड़े। रास्ते में आपने पबना, चुडँगा, दरशना, बागुला, गटा घाट, मदनपुर, कँचल पाड़ा, नई हाटी, बारकपुर इत्यादि स्थानों में पड़ाव किये और स्थानीय संगतों से सम्पर्क किया, इस प्रकार आप कलकत्ता पहुचे। कलकत्ता में उन दिनों गुरू नानक देव जी द्वारा चलाये गये दो सँस्थान थे– बड़ी संगत व छोटी संगत। जहाँ समय के अन्तराल के कारण उत्साह में कमी आ गई थी जिसे पुनः गुरूदेव जी ने जीवित किया और आगे चल पड़े। आप रास्ते में जालेश्वर, पालासारे, कटक तथा भुवनेश्वर नामक स्थानों पर संगतों को दर्शन देकर जगन्नाथपुरी पहुँचे। वहाँ पर कुछ दिन अपने मधुर उपदेशों से लोगों को कृतार्थ करने के बाद पटना नगर के लिए प्रस्थान कर गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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