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24. त्रिपुरा नरेश राम राय

श्री गुरू तेग बहादुर साहब जी की स्तुति बँगाल तथा आसाम के विभिन्न क्षेत्रों में फैल गई। त्रिपुरा नरेश किसी कारणवश ढाका के निकट गोरीपुर परिवार सहित आया तो उसे श्री गुरू तेग बहादर जी की महिमा सुनने को मिली। जब उसे ज्ञात हुआ कि गुरूदेव जी ने औरँगजेब के प्रतिनिधि राजा रामसिँह और आसाम के नरेश चक्रध्वज में मध्यस्ता करके सँधि करवा दी है तो वह गुरूदेव जी के दर्शनों के लिए निकल पड़ा। जब उसका श्री गुरू तेग बहादर जी से साक्षात्कार हुआ तो वह उनके व्यक्तित्त्व से बहुत प्रभावित हुआ। उसने गुरूदेव से आग्रह किया कि वह उसके राज्य में पदार्पण करें। गुरूदेव का लक्ष्य तो गुरू नानक देव जी के सिद्धान्तों का प्रचार करना था, इसलिए वह किसी को भी निराश नहीं करते थे। इस प्रकार गुरूदेव नरेश राम राय के साथ उसकी राजधानी में पहुँचे और स्थानीय जनता को अपने प्रवचनों द्वारा कृतार्थ किया। एक दिन एक महानुभाव ने गुरूदेव जी से कहा– हमारे नरेश बहुत भले हैं किन्तु इनके कोई सन्तान नहीं है, कृप्या आप कोई ऐसा उपाय सुझायें, जिससे राजा के उत्तराधिकारी का जन्म हो। गुरूदेव जी ने संगत की इच्छा को देखते हुए विचार किया कि गुरू नानक देव जी के घर में क्या कमी है ? यदि प्रार्थना शुद्ध हृदय से हो तो प्राप्ति अवश्य ही होगी और इसके साथ संगत को गुरमति सिद्धान्त बताते हुए निम्नलिखित शब्द पढ़ा, जिसमें मानव को सदैव प्रभु इच्छा में जीना सिखाया गया है और बताया गया है कि मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए:

जो नरु दुख मै दुखु नही मानै ।।
सुख सनेह अरु भै नहीं जा कै कंचन माटी जानै। रहाउ ।।
नह निंदिआ नह उसतति जाकै लोभु मोहु अभिमाना ।।
हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना ।।
आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहे निरासा ।।
काम क्रोध जिह परसै नाहनि तिह घटि ब्रह्म निवासा ।।
गुर किरपा जिह नर कउ कीनी तिह इह जुगति पछानी ।।
नानक लीन भइओ गोबिंद सिउ जिउ पानी संगि पानी ।।

गुरूदेव जी ने इस शब्द के माध्यम से बताया कि मनुष्य को त्रुटियों वाला जीवन त्यागकर विवेकशील जीवन जीना चाहिए, जिससे हर समय हर्षउल्लास बना रहता है और जीवात्मा प्रभु चरणों में स्वीकार्य होती है। तद्पश्चात् समस्त संगत ने मिलकर प्रभु चरणों में नरेश के घर सन्तान उत्पत्ति के लिए प्रार्थना की। एक व्यक्ति ने सँशय प्रकट किया कि हम कैसे जानेंगे कि भावी राजकुमार हमारी प्रार्थना का परिणाम होगा ? शँका ठीक थी। अतः गुरूदेव जी ने संगत को बताया कि बालक के मस्तिष्क पर हमारी अँगूठी पर खुदे हुए चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई देगा। इसके साथ ही उन्होंने नरेश से कहा: आप उसका नाम रतनराय रखना। कुछ समय पश्चात् आप स्थानीय संगत से आज्ञा लेकर वापिस ढाका में पधारे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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