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20. गुरू चरणों में गँगा

सर्वप्रथम श्री गुरू नानक देव जी ने ही बनारस में सिक्खी का बीज बोया था। इसके पश्चात् श्री गुरू हरिगोबिन्द जी के समय भाई गुरदास जी यहाँ की साघसंगत में गुरमति का प्रचार प्रसार करते रहे। जिन दिनों श्री गुरू तेग बहादर जी वहाँ पहुँचे तो वहाँ की स्थानीय संगत में श्री जवेहरी मल, काल दास, कल्याण मल आदि सिक्ख स्थानीय धर्मशाला में प्रमुख व्यक्ति थे। आप सबने गुरूदेव का भव्य स्वागत किया और आपको रेशम मौहल्ले में ठहराया गया। जैसे ही स्थानीय संगत को मालूम हुआ कि नौंवे गुरू नानक पधारे हैं। अपार जनसमूह आपके दर्शनों के लिए उमड़ पड़ा। स्थानीय मसँदों (मिशनरियों) ने दसमाँश की राशि यानि आय का दसवाँ भाग जो उन्होंने श्रद्धालु सिक्खों से एकत्रित की हुई थी, गुरूदेव जी के समक्ष लाकर रख दी। गुरूदेव जी ने तुरन्त लंगर चलाने का आदेश दिया। इस प्रकार दोनों समय गुरू दरबार सजने लगा। गुरूदेव संगत की समस्याएँ सुनते और अपने प्रवचनों में उनका समाधान बताते। उनका कथन होता: प्रभु चिन्तन मनन ही सभी समस्याओं का समाधान है। आप जी उन दिनों स्थानीय प्रचारक जवेहरी मल के यहाँ रूके हुए थे। प्रातःकाल श्री जवेहरी मल जी गँगा स्नान को जाया करते थे, जबकि सभी अन्य सदस्य कुएँ के जल से स्नान कर लेते थे। एक दिन जब वह घाट पर स्नान के लिए चलने लगे। तो गुरूदेव जी ने उनके मन का भ्रम को निकालने के लिए कह दिया: सिक्ख गँगा के पास नहीं जाते, बल्कि गँगा ही खिंचकर गुरू भक्तों के चरणों में स्वयँ पहुँच जाती है। इस पर जवेहरी मल जी ने कहा: हे गुरूदेव ! मैं कुछ समझा नहीं। तब गुरूदेव जी ने कहा: आप अपने पाँव के नीचे की सिलहा उठाइए तो, जैसे ही वचन मानकर श्री जवेहरी मल जी ने पैर के नीचे की सिलहा उखाड़ी वैसे ही वहाँ से एक झरना बहुत वेग से फूटकर बह निकला। सभी आश्चर्य में थे। गुरूदेव जी ने कहा: लो यही गँगा जल है। अब इसमें डुबकी लगा लो। प्रभु का जहाँ चिंतन मनन होता हो, वह स्थान पवित्र होता है, इसलिए तुम्हारे घर में गँगा का आगमन भी इसी कारण हुआ है। जब पानी बहने लगा तो सारा घर और सारा मौहल्ला भर गया तो कई सिक्ख घबरा गये। उन्होंने कहा: सच्चे पातशाह ! इस तरह तो सारा शहर डूब जायेगा, इसे रोकने का कोई उपाय तो कीजिए। गुरूदेव जी ने कहा: सतसँग के स्थान के जल से किसी की हानि नहीं हुआ करती। डूबते तो वे स्थान हैं, जहाँ बुरे आचरण वाले लोग रहते हैं। यह तो प्रभु भक्ति की जगह है, इसलिए यह खूब फूले फलेगी। गुरूदेव जी के आदेश से उस सिलाह को पुनः उसी स्थान पर रख दिया गया तो पानी का झरना थम गया। गुरूदेव जी ने सभी को समझा दिया कि गुर समान तीरथ नहीं कोइ, की वास्तविक व्यवस्था कर दिखाई। अब इसी जगह पर एक बावड़ी बनी हुई है। माना जाता है कि निष्ठावान लोगों के रोग उसमें स्नान करने से दूर हो जाते हैं। अब इस स्थान को गुरूद्वारा बड़ी संगत ‘नीची बाग’ कहते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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