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2. बाल्यकाल

श्री त्यागमल जी अभी केवल चार वर्ष के ही थे कि आपके बड़े भाई श्री गुरूदित्ता जी का शुभ विवाह था। जब बारात चलने लगी तो आपकी दूष्टि एक बालक पर पड़ गई जो उस समय नग्न अवस्था में दूर से बारात को बहुत हसरत से निहार रहा था। उसी समय आपने अपनी पोशाक पर एक दृष्टि डाली और महसूस किया मेरी ही आयु का एक बालक जिसके पास एक लँगोट तक नहीं, इसके विपरीत मैं एक शाही पोशाक में यह कैसा अन्याय ? बस फिर क्या था, जैसे ही आपके मन में दया की भावना उत्पन्न हुई, आपने उसी क्षण अपनी पोशाक उतारकर उस नग्न बालक को पहना दी। माता नानकी जी का ध्यान जब आप पर गया तो वह आश्चर्य में पड़ गई कि अभी अभी उन्होंने अपने लाडले को एक विशेष पोशाक पहनाकर शँगारा था, मालूम करने पर त्यागमल जी ने कह दिया ‘मुझे वस्त्रों की कमी नहीं है, अभी और मिल जाएँगे परन्तु उस बालक को किसी ने नहीं पूछा। आपकी यह त्याग की भावना को देखकर माता जी कह उठी– तेरे पिता ने तेरा नाम ठीक ही रखा है। आप जी के बड़े भाई श्री अटल जी आपसे आयु में दो वर्ष बड़े थे। वह भी सदैव चिंतन-मनन में व्यस्त रहते किन्तु साधारण बालकों में घुलमिल कर नित्य खेल भी खेला करते। एक दिन खेल के समाप्त होने से पूर्व सँध्या होने के कारण अंधेरा हो गया, अगले दिन खेल की बाजी दूसरे खिलाड़ी मोहन को देनी थी, वह निश्चित समय पर नहीं आया। मालूम करने पर पता लगा कि वह साँप के काटने के कारण मर गया है। श्री अटल जी को यह ‘बात कुछ हजम नहीं हुई, ’वह कहने लगे कि मोहन मक्कार है, ऐसे ही बहाना करता होगा। हम उसे घर से उठा लाते हैं और वह उसके घर गये। उसे बाजु से पकड़कर कहा: उठ मक्कारी न कर हमारी बाज़ी दो। बस फिर क्या था। वह बिस्तर से प्रभु का नाम लेता हुआ उठ बैठा। यह कौतुहल देखकर सभी स्तब्ध रह गये। जल्दी ही वह समाचार पिता श्री गुरू हरिगोबिन्द जी को मिल गया। उन्होंने इस घटना को बहुत गम्भीरता से लिया। जब श्री अटल जी उन्हें मिलने आये तो उन्होंने बेटे से कहा: ’तुम कब से परम पिता परमेश्वर के प्रतिद्वन्द्वी बन गये हो ? मरण और जीवन दान देना तो उस प्रभु परमेश्वर का काम है, इस बात का उत्तर श्री अटल जी के पास न था। इस पर पिता जी ने कह दिया कि जीवन दान देने के बदले अपने प्राणों की आहुति देनी होती है। यह सुनते ही श्री अटल जी ने घर से दूर एकान्तवास लेकर अपने प्राण त्याग दिये। छोटा भाई होने के नाते श्री त्यागमल जी का उनसे प्रगाढ़ स्नेह था। अकस्मात उनके देहान्त से, उनके कोमल हृदय को गहरा आघात हुआ, जिससे आप वैराग्य अवस्था को प्राप्त हो गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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