12. चौधरी त्रिलोका जवंदा
श्री गुरू तेगबहादुर साहब जी गुरमत्त का प्रचार करते हुए खोंग्राम पहुँचे। गुरूदेव
जी के दर्शनों को स्थानीय लोग यथाशक्ति अपनी अपनी भेंट लेकर उपस्थित हुए। गुरूदेव
जी ने समस्त संगत को रोम—रोम में रमे राम की उपासना करने को कहा और अपने प्रवचनों
में निराकार प्रभु परमेश्वर के अतिरिक्त बाकी देवी, देवताओं आदि की पूजा करने से
जनसाधारण को वर्जित किया। इस पर स्थानीय लोगों ने गुरूदेव जी को बताया कि वहाँ का
चौधरी त्रिलोका जवंदा कब्रों का उपासक है, वह वीरवार, पीर की म़जार पर दूध इत्यादि
चढ़ाता है। शायद इसीलिए वह आपके दर्शनों को भी नहीं आया। गुरूदेव जी ने इस गम्भीर
बात को ध्यान से सुना और उन्होंने अनुभव किया कि जैसा राजा तैसी प्रजा की कहावत
अनुसार, वहाँ के निवासी आज नहीं तो कल कब्रों की पूजा में जुट जायेंगे जो कि उनके
जीवन के श्वासों की पूँजी का नष्ट ही करेगी क्योंकि जो सर्वशक्तिमान सच्चिदानंद को
छोड़कर मूर्दो को पूजते हैं। उनके हाथ कुछ नहीं लगता। गुरूदेव की इस टिप्पणी पर कुछ
जिज्ञासुओं ने गुरूदेव से आग्रह किया, हे गुरूदेव ! आप इस विषय पर विस्तार से
प्रकाश डाले, जिससे भूले भटके लोग सदबुद्धि प्राप्त कर सकें। तब गुरू तेग बहादुर जी ने कहा: जो मनुष्य अपने पूरे जीवनकाल में
कुछ प्राप्तियाँ नहीं कर सका, न अपने लिए और न समाज के हित के लिए, वह वद्धावस्था
में मोहताज होकर दूसरों पर बोझ बन कर जीता रहा, मरणोपरान्त वह कैसे इन सभी
गाँववासियों की कार्य सिद्ध करेगा। यदि उस व्यक्ति ने प्रभु नाम रूपी धन अर्जित किया
है तो सहज है, उसे मोक्ष प्राप्त होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि वह प्रभु चरणों में
विलीन है, न कि कब्र में। यदि उस व्यक्ति ने अपने श्वासों की पूँजी नष्ट की है तो
उसे तुरन्त उसके कर्मों अनुसार पुनर्जन्म मिल गया होगा। तात्पर्य यह है कि वह तब भी
कब्र में वास नहीं करता। ऐसे में कब्र पूजने वालों को क्या लाभ हो सकता है ?
गुरूदेव जी के प्रवचनों का सार किसी व्यक्ति ने जाकर चौधरी त्रिलोका जवंदा को बताया।
उसने अनुभव किया कि बात में तथ्य है। वह कुछ भेंट लेकर गुरूदेव जी के सम्मुख
उपस्थित हुआ और पहले न आने के लिए पश्चाताप करने लगा। उससे गुरूदेव ने पूछा: पहले न
आने का क्या कारण था ? उत्तर में चौधरी त्रिलोका ने बताया: मैं तो आपके दर्शनों के
लिए चल पड़ा था, परन्तु मज़ार के पुजारी ने आपके पास आने नहीं दिया, उसका मानना है कि
मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा तो फिर उसकी आय के साधन कम होते चले जायेंगे, वास्तव में
वह जनता में जागृति नहीं आने देना चाहता। गुरूदेव जी ने कहा: जब ज्ञान आयेगा तो
अज्ञानता का अँधकार स्वयँ भाग जाएगा, इसलिए सत्य के मार्ग पर चलने से पहले पूरे गुरू
की खोज अति आवश्यक है, नहीं तो भटकन बनी रहेगी और बार बार जन्म लेते रहोगे। चौधरी
त्रिलोका जवंदा ने गुरूदेव जी के समक्ष स्वयँ को समर्पित करके कहा: हे कृपा सिंधू,
उसे क्षमा करें और विवेकबुद्धि दें जिससे उसे शाश्वत ज्ञान की प्राप्ति हो सके। उसकी
नम्रता देखकर गुरूदेव जी ने उसे गुरूदीक्षा देकर कृतार्थ किया।