3. नन्हें गुरु के नेतृत्त्व में
श्री गुरू हरिराय जी के ज्योति-ज्योत समा जाने के पश्चात् श्री गुरू हरिकिशन साहब
जी के नेतृत्त्व में कीरतपुर में सभी कार्यक्रम यथावत् जारी थे। दीवान सजता था संगत
जुड़ती थी। कीर्तन भजन होता था। पूर्व गुरूजनों की वाणी उच्चारित की जाती थी, लँगर
चलता था और जनसाधारण बाल गुरू हरिकिशन के दर्शन पाकर सन्तुष्टि प्राप्त कर रहे थे।
गुरू हरिकिशन जी भले ही साँसारिक दृष्टि से अभी बालक थे परन्तु आत्मिक बल अथवा
तेजस्वी की दृष्टि से पूर्ण थे, अतः अनेक सेवादार उनकी सहायता के लिए नियुक्त रहते
थे। माता श्रीमती किशनकौर जी सदैव उनके पास रहकर उनकी सहायता में तत्पर रहती थीं।
भले ही वह कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे थे तो भी भविष्य में सिक्ख पँथ उनसे
बहुत सी आशाएँ लगाए बैठा था। उनकी उपस्थिति का कुछ ऐसा प्रताप था कि सभी कुछ सुचारू
रूप से सँचालित होता जा रहा था। समस्त संगत और भक्तजनों का विश्वास था कि एक दिन बड़े
होकर गुरू हरिकिशन जी उनका सफल नेतृत्त्व करेंगे और उनके मार्ग निर्देशन में सिक्ख
आन्दोलन दिनों दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर होता चला जाएगा।