5. भाई फतह सिंघ मुक्ता
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नामः भाई फतह सिंघ मुक्ता
पुराना नामः फतहदास
अमृतपान करने के बाद नामः भाई फतह सिंघ जी
5 मुक्तों में से पाँचवें नम्बर के मुक्ते
आप सिक्ख इतिहास में अमृतपान करने वाले 11 वें नम्बर के सिंघ हैं
निवासीः गाँव खुरदपुर, माँरट
कब शहीद हुएः 22 दिसम्बर 1705
कहाँ शहीद हुएः चमकौर की गढ़ी
किसके खिलाफ लड़ेः मुगलों के खिलाफ
अन्तिम सँस्कार का स्थानः चमकौर की गढ़ी
अन्तिम सँस्कार कब हुआः 25 दिसम्बर 1705
महत्वपूर्ण नोटः कई इतिहासकार यह लिखते हैं कि 5 प्यारों
के बाद 5 मुक्तों ने अमृतपान किया था, लेकिन सही बात तो यह है कि 5 प्यारों के बाद
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी ने अमृतपान किया था। इसलिए यहाँ पर हमने पाँचवें
मुक्ते को अमृतपान करने के मामले में 11 वां नम्बर दिया है।
भाई फतह सिंघ मुक्ता जी ने भी 22 दिसम्बर 1705 के दिन चमकौर की
गढ़ी में शहीदी हासिल की थी। आप भी श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के प्रॅमुख
सिक्खों में से एक थे। आपके बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है पर इतना
जरूर पता चलता है कि वो गाँव खुरदपुर, माँरट, के रहने वाले थे। भाई फतह सिंघ मुक्ता
उन पाँच मुक्तों में शामिल हैं, जो पाँच प्यारों के बाद गुरू साहिब जी को अपना सीस
देने के लिए उठे थे। यह पाँच प्यारों के बाद अमृतपान करने वाले पाँचवें नम्बर के
मुक्ते थे। इनका पहला नाम भाई फतहदास था, बाद में अमृतपान करने के बाद इनका नाम भाई
फतह सिंघ मुक्ता हो गया। यह गुरू साहिब जी के खास दरबारी सिक्खों में से एक थे। यह
अमृतपान करने वाले 11 वें नम्बर के सिंघ बने। 20 दिसम्बर 1705 को जब गुरू साहिब जी
ने श्री आनँदपुर साहिब जी छोड़ने का निर्णय लिया तो गुरू साहिब जी के साथ जीने-मरने
की कसम खानें वाले 39 ओर सिक्खों के साथ आप भी थे। इन 40 सिक्खों को श्री आनँदपुर
साहिब जी के 40 मुक्ते कहकर सम्बोधित किया जाता है। गुरू साहिब जी के साथ यह कोटला
निहँग से होते हुए श्री चमकौर साहिब जी पहुँचे। सारे के सारे सिक्ख थके हुए थे। सभी
ने बुधीचँद रावत की गढ़ी में डेरा डाल लिया। दूसरी ओर किसी चमकौर निवासी ने यह
जानकारी रोपड़ जाकर वहाँ के थानेदार को दे दी। इस प्रकार मुगल फौजें चमकौर की गढ़ी
में पहुँच गईं। सँसार का सबसे अनोखा युद्ध आरम्भ हो गया। मुगलों की गिनती लगभग 10
लाख के आसपास थी। कुछ ही देर में जबरदस्त लड़ाई शुरू हो गई। सिक्खों ने गुरिल्ला
लड़ाई का सहारा लिया। सिक्ख पाँच-पाँच का जत्था लेकर गढ़ी में से निकलते और लाखों
हमलावरों के जूझते और तब तक जूझते रहते जब तक कि शहीद नहीं हो जाते। शाम तक बहुत से
सिक्ख शहीद हो चुके थे। साहिबजादा अजीत सिंघ जी और साहिबजादा जुझार सिंघ जी भी शहीदी
पा गए थे। रात होने तक 35 सिक्ख शहीद हो चुके थे। इनमें भाई फतह सिंघ मुक्ता जी भी
शामिल थे।