7. बालक फूल व सँदली
श्री गुरू हरिराय जी अपनी प्रचार फेरी के कार्यक्रम के अन्तर्गत मालवा क्षेत्र के
लोगों के पास पहुँचे। कभी इस क्षेत्र के लोगों ने श्री गुरू हरिगोबिन्द साहब जी को
उनके तीसरे यृद्व में सहयोग दिया था। इनकी कुर्बानियों के बल पर शाही सेना पराजित
होकर भाग गई थी। यहाँ के स्थानीय निवासियों ने आपका भव्य स्वागत किया। आपको अपने
बीच पाकर, अपने आज को धन्य मानने लगे। यहाँ का एक निवासी रूपचँद जो श्री गुरू
हरिगोबिन्द जी की सेना में था, जिसने चौथे व अन्तिम यृद्व में वीरगति पाई थी, अपने
पीछे दो शिशु छोड़ गया था, जो अब तरूण अवस्था में थे, किन्तु अभावग्रस्त, दरिद्रता
का जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनका एक चाचा था, चौधरी काला, वह अपने भतीजों की इस
दुर्दशा से दुखी था। जब काले को गुरू हरिराय जी के गाँव में पधारने का समाचार मिला
तो उसने सोचा कि उन्हें यदि बच्चों की आर्थिक स्थिति के बारे में बताया जाये तो
गुरूदेव अवश्य ही उनकी सहायता करेंगे। अतः उसने अपने भतीजों को कुछ समझाया-बुझाया
और गुरू हरिराय जी के दरबार में जा उपस्थित हुए। गुरू हरिराय जी उस समय दीवान सजाकर
संगतों की समस्याएँ सुनकर उनका समाधान कर रहे थे। तभी चौधरी काले के सिखाये उसके
भतीजों ने गुरूदेव को शीश झुकाकर अपना पेट बजाना शुरू कर दिया। उनके इस करतब से गुरू
हरिराय जी मुस्करा दिये और बच्चों के प्रति उनके हृदय में स्नेह उमड़ पड़ा।
गुरू जी ने चौधरी काले की ओर सँकेत किया और पूछा: "चौधरी", ये
बच्चे क्या कर रहे हैं।’ तब चौधरी ने उत्तर दिया: हजूर ! बच्चे भूखे हैं। गुरूदेव
मुस्करा कर बोले: यह तो बड़ा अनोखा अन्दाज है, अपनी बात कहने का ? कौन हैं ये
?’‘चौधरी बोला हजूर: कि ये मेरे भाई रूपचन्द के बेटे हैं, जो शाही सेना से जूझते
हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।’ गुरूदेव ने आश्चर्य में कहा: "हमारे यौद्वा के
पुत्र और भूखे ?" दया के सागर के हृदय में स्नेह उमड़ पड़ा और उन्होंने बच्चों को
निकट बुलाकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की और आशीष दी कि तुम भूखे नहीं रहोगे, तुम
और तुम्हारी सन्तानें इस क्षेत्र की नरेश बनेंगी। जब चौधरी काला यह खुशखबरी लेकर घर
लौटा। तो उसकी पत्नी ने कहा: कि तुमने अपने भतीजों की तो किस्मत बदल डाली, परन्तु
अपने बच्चों के विषय में भी कुछ सोचा है ? अब वह तुम्हारे भाई के लड़कों के मोहताज
होंगे। इस पर चौधरी काले ने कहा: तुम्हारा क्या मतलब है ? उत्तर में पत्नी बोली:
अपनी सँतानों के लिए भी "गुरू जी" से कोई ऐसी आशीष माँगो कि वे भी सुखपूर्वक जीवन
व्यतीत करें। चौधरी काले ने कहा: कि यह तो तुमने अच्छी याद दिलाई। मैंने अपनी
सन्तानों के लिए तो कुछ माँगा ही नहीं। मैं फिर गुरूजी के पास जाऊँगा। उनका हृदय
बहुत विशाल है। वह हमारी सन्तान का भाग्य भी बदल देंगे। इस प्रकार पत्नी के कहने पर
चौधरी काले एक बार फिर गुरूदेव जी के समक्ष हाजिर हुआ। गुरूदेव, चौधरी काले को
देखकर बोले: आओ चौधरी अब कैसे आना हुआ ? चौधरी हाथ जोड़ और शीश झुका कर बोला:
गुरूदेव ! आपने मेरे भतीजों की भाग्य रेखा तो बदल दी है। अब कुछ ऐसा कीजिए कि मेरी
सन्तान का भाग्य भी प्रबल हो जाए। गुरूदेव जी ने कहा: कि तुम्हारी माँग भी उचित ही
जान पड़ती है, अच्छा ठीक है। तुम्हारी सन्तान भी यशस्वी होगी। उनके अधिकार क्षेत्र
में बाइस गाँव होंगे और वह आत्मनिर्भर होंगे, किसी का उनको हाला नहीं भरना पड़ेगा।
चौधरी काला खुशी खुशी घर लौट गया। सचमुच कालान्तर में गुरूदेव के शब्द सत्य सिद्व
हुए। फूलकियाँ रियासतें इन्हीं भाइयों की थी, जिन्होंने सिक्खी के प्रचार में भी
अपना योगदान दिया।
नोट: पटियाला, नाभा और जिंद फुलकियाँ रियासतें कहलाती हैं, ये बालक फूल की सन्ताने
थीं।