2. परिचय श्री गुरू हरिराय जी
श्री गुरू हरिगोबिन्द जी के पाँच पुत्र थे। सबसे बड़े पुत्र का नाम श्री गुरदित्ता
जी था। श्री गुरदित्ता जी के दो पुत्र थे। श्री धीरमलव, श्री हरिराय जी, श्री
गुरूदित्ता जी बहुत ही योग्य पुरूष थे किन्तु उन्होंने एक भूल के पश्चाताप में पिता श्री गुरू हरिगोबिन्द जी की नाराजगी को मद्देनजर रखते हुए स्वेच्छा से योगबल द्वारा
शरीर त्याग दिया था। अतः जब श्री गुरू हरिगोबिन्द जी ने यह अनुभव किया कि उनके
श्वासों की पूँजी समाप्त होने वाली है तो उन्होंने अपने पौत्र श्री हरिराय जी को
अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। श्री हरिरायजी का प्रकाश, नगर कीरतपुर में 19 माघ,
शुक्ल पक्ष, 13 संवत 1687 तदानुसार 16 जनवरी सन् 1630 को माता निहाल कौर के उदर से
पिता श्री गुरदित्ता जी के गृह में हुआ। आपको आपके दादा श्री हरिगोबिन्द जी,
पराक्रमी पुरूष मानते थे। अतः उन्होंने आपको 14 वर्ष की आयु में ही गुरिआई गद्दी दे
दी। गुरू हरिराय जी का विवाह अल्पायु में हो गया। जब आप केवल 11 वर्ष के ही थे। आपके
ससुर श्री दयाराम जी अनूप नगर के निवासी थे। आपकी पत्नी श्रीमती कृष्ण कौर जी ने
कालान्तर में क्रमशः दो बेटों को जन्म दिया। श्री रामराय व श्री हरिकृष्ण जी। आपका
वैवाहिक जीवन बहुत सुखमय था।
श्री गुरू हरिराय जी की जीवनचर्या अत्यन्त सादगी से भरी थी। उनके
उपदेश पूर्व गुरूजनों की भान्ति बहुत सरल थे, जो जनसाधारण में बहुत लोकप्रिय हुए।
जैसा कि शुभ कर्मों से धन उपार्जन करो, मिल-बाँटकर खाओ, प्रभु का नाम जपो। इसके
अतिरिक्त सद्कर्म करो अथवा बुराई से दूर रहो। दामन सँकोच कर चलो। श्री गुरु
हरिगोबिन्द साहब जी अपने पौत्र श्री हरिराय जी से कुछ विशेष लगाव रखते थे। अधिकाँश
समय उनको अपने पास रखते और विशेष प्रशिक्षण देते रहते। अपने दादा जी की छत्तरछाया
में श्री हरिराय जी भी बहुत प्रसन्नचित रहते। एक दिन प्रातः काल दादा-पोता अपने निजि
उद्यान में टहल रहे थे कि गुरु हरिगोबिन्द जी को एक विशेष फूल बहुत भा गया वह
साधारण फूलों की अपेक्षा कुछ अधिक सुन्दर और बडी आकृति का था। गुरुदेव जी ने उस फूल
की प्रशँसा की और आगे बढ़ने लगे किन्तु वह फूल श्री हरिराय जी के दामन से उलझ गया और
खीचाव पडने पर टूटकर बिखर गया । यह देखकर गुरुदेव जी ने श्री हरिराय जी को सतर्क
किया यदि दामन बड़ा हो तो सँकोच कर चलना चाहिए। इस वाक्य ने श्री हरिराय जी के कोमल
मन पर गहरी छाप छोडी वह जीवन का रहस्य जानने के लिए उस वाक्य में छिपे भाव को समझने
के लिए प्रयास करने लगे उन्होंने उस वाक्य का अर्थ निकाला, यदि प्रभु ने बल दिया हो
तो उसे प्रयोग करते समय सँयम से काम लेना चाहिए और उन्होंने इस वाक्य के महत्त्व को
समझते हुए समस्त जीवन अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया।