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10. भाई गौरा जी  

भाई भगतू जी, श्री गुरू अरजन देव जी के समय से ही गुरू घर के अनन्य सिक्ख चले आ रहे थे। श्री गुरू हरिराय जी के समय में यह प्रौढ़ावस्था में पहुँच गये थे। कुछ वर्ष पूर्व उनकी पत्नी का देहान्त हो गया था और उन्होंने एक नया ववाह रचा लिया किन्तु आपकी अकस्मात् मृत्यु हो गई। जिस कारण आप की नई दुल्हन अभी युवा ही थी। भाई भक्तु जी के दोनों पुत्र जीवन व गौरा जी अपनी सौतेली माँ का बहुत ही आदर करते थे। एक दिन गुरूदेव के एक निकवर्ती सेवक भाई जस्सा जी ने भाई भगतू जी की विधवा पत्नि जो कि अति युवा थी, के समक्ष पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखा, जो कि उन्होंनें इन्कार कर दिया और बाकी जीवन स्वर्गीय पति की स्मृति में व्यतीत करने की इच्छा बताई। जब यह बात स्वर्गीय भगतू जी के पुत्र गौरा जी को मालूम हुई तो उन्होंने इस प्रस्ताव में अपना अपमान समझा और क्रोध में श्री जस्सा जी की हत्या करवा दी। भाई जस्सा जी गुरू हरिराय जी के परम सेवक थे। उनकी हत्या गुरूदेव को सहन नहीं हुई। उन्होंने भाई गौरा को एक अपराधी माना और उसे उसकी करतूत की सजा देने की बात कही। उधर भाई गौरा भी अपनी भूल पर पश्चाताप कर रहा था, किन्तु उससे भावुकता में हत्या हो गई थी। अब वह स्वयँ को अपराधी मानकर दण्डित करना चाहता था और मानसिक तनाव से मुक्ति प्राप्त करने के लिए युक्ति सोचने लगा। आखिर उनको एक युक्ति सूझी कि किसी भी प्रकार सेवा करके गुरूदेव को प्रसन्न किया जाये, जिससे वह मुझे मेरे जघन्य अपराध के लिए क्षमा दान दे दें। किन्तु वह गुरूदेव के सम्मुख आ नहीं सकता था। अतः गुरूदेव जी जहाँ भी जाते वह उनके पीछे अपने शस्त्रधारी सहयोगियों सहित इस प्रकार मँडराता, जिस प्रकार उसकी सुरक्षाकर्मियों के रूप में नियुक्ति की गई हो। एक बार गुरूदेव जी करतारपुर से कीरतपुर लौट रहे थे कि सतलुज नदी पार करते समय उनका परिवार पीछे छूट गया। इतफ़ाक से दूसरी तरफ से भूतपूर्व जरनैल मुखलिस खान का पुत्र मुहम्मदयार खान एक सैनिक टुकड़ी के साथ दिल्ली को जा रहा था। मुखलस खान श्री हरिगोबिन्द जी के हाथों लौहगढ़ के युद्व में मारा गया था। बदला लेने का उचित अवसर देखकर मुहम्मदखान ने गुरूदेव के परिवार पर आक्रमण कर दिया, जैसे ही यह सूचना भाई गौरा को मिली वह तुरन्त सतर्क हुआ और मुहम्मद खान की सैनिक टुकड़ी पर टूट पड़ा। कड़े मुकाबले में दोनों पक्षों के कुछ सैनिक लड़ते रहे परन्तु मुहम्मदखान अपना पक्ष कमजोर देखकर वहाँ से भाग निकला। इस प्रकार समय रहते भाई गौरा ने कठिन समय में गुरूदेव जी के परिवार को सुरक्षा प्रदान कर दी। जब इस घटना की सूचना गुरूदेव जी को मिली तो वह भाई गौरा की सेवा से सन्तुष्ट हुए और उन्होंने उसे पिछली भूल के लिए क्षमा प्रदान कर दी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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