3. भाई सतीदास जी
भाई सतीदास जी, भाई हीरानंद के सुपुत्र, भाई दवारका दास के पोते और शहीद भाई पराग
दास (परागा) के पड़पोते थे। आप गाँव करिआला (जिला, जिहलम, पाकिस्तान) के वासी थे। आप
बिछर-ब्राहम्ण परिवार से संबंध रखते थे। आपका परिवार गुरू रामदास साहिब जी के समय
से ही सिक्खी के साथ जुड़ा हुआ था। आपके पड़दादा भाई परागा जी, श्री गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी के समय में सिक्ख फौज के पाँच प्रॅमुख जरनैलों में से एक थे। भाई परागा जी
ने रूहीला के युद्ध में शहीदी प्राप्त की थी। भाई परागदास जी के दोनों पड़पोते, भाई
मतीदास और भाई सतीदास जी का श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ बहुत ही प्यार था।
वह दोनों अक्सर गुरू साहिब जी के साथ ही रहते थे। भाई मतीदास जी सिक्ख धर्म के एक
प्रसिद्ध विद्वान भी थे और कई बार गुरूबाणी की कथा भी किया करते थे। अपने भाई (भाई
मतीदास जी) के बाद भाई सतीदास जी दूसरे ऐसे शख्स थे, जिन्हें गुरू साहिब जी की संगत
करने का मान मिला हुआ था। 1665 में जब गुरू तेग बहादर साहिब जी आसाम, बँगाल और
बिहार में धार्मिक यात्रा पर गए तो उनके साथ भाई मतीदास जी भी थे। इसी प्रकार जुलाई
1675 में जब गुरू साहिब जी गिरफ्तार करके (गुरू साहिब जी ने स्वयं ही गिरफ्तारी दी
थी) नवंबर में दिल्ली लाए गए तो उनके साथ भाई सतीदास जी भी अन्य सिक्खों के साथ
शामिल थे। इनके लिए भी गुरू तेग बहादर साहिब जी को शहीद करने का फतवा जारी किया गया
था।
नवंबर 1675, चाँदनी चौक, दिल्लीः
भाई सती दास जी को बन्दीखाने से बाहर चाँदनी चौक में सार्वजनिक रूप मे काज़ी ने
चुनौती दी और कहा कि वह इस्लाम स्वीकार कर लें और दुनियाँ की सभी सुख सुविधाएँ
प्राप्त कर ले अन्यथा मृत्युदण्ड के लिए तैयार हो जाए। इस पर भाई सतीदास जी ने
उत्तर दिया कि वह मृत्यु रूपी दुल्हन की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा हैं और
काज़ी पर व्यँग करते हुए मुस्कुरा दिये। काज़ी बोखला गया और उसने उनको रूई में लपेटकर
जला डालने का आदेश दिया। उसका विचार था कि जीवित जलने से व्यक्ति की आत्मा दोज़क (नरक)
को जाती हैं। इस प्रकार गुरूदेव के तीनों सिक्ख साथी हँस-हँसकर शहीदी पाकर सिख
इतिहास में नये दिशानिर्देश व कीर्तिमान की स्थापना कर गये। और आने वाली पीढ़ियों के
लिए प्रेरणादायक मार्ग छोड़ गये। भाई सती दास जी गुरू घर में लेखन का कार्य करते थे।