![](../100.%20MP3%20Format%20Files/STARTING%20POINTS/65.JPG)
2. काज़ी अब्दुल रहिमान
सन् 1736 ईस्वी में पँजाब के राज्यपाल जक्रिया खान ने अपनी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों
तथा विद्वानों का सम्मेलन बुलाया और उसमें उसने अपनी गम्भीर समस्या रखी कि मैंने तथा
मेरे पिता अब्दुलसमद खान ने लगभग 20 वर्ष से सिक्ख सम्प्रदाय को समाप्त करने का
बहुत सख्ती से अभियान चलाया, जिसमें करोड़ों रूपये व्यय हुए और हजारों अनमोल जीवन
व्यर्थ गए परन्तु कोई परिणाम नहीं निकला। इसका क्या कारण हो सकता है, जबकि हमने पकड़े
गए सिक्खों को सबसे ज्यादा कष्टदायक यातनाएँ देकर मृत्युदण्ड दिए हैं ताकि कोई
व्यक्ति सिक्ख बनने का साहस न कर सके। परन्तु इनकी सँख्या दिनो-दिन बढ़ती ही जाती
है। इसका उत्तर किसी को नहीं सूझ रहा था परन्तु वहाँ पर विराजमान शाही काज़ी अब्दुल
रहिमान ने कहा कि जहाँ तक मेरा विश्वास है कि इनका मुर्शद (गुरू) बहुत अजमत (आत्मबल)
वाला हुआ है, वह श्री दरबार साहब जी के सरोवर में आब-ए-हयात (अमृत) मिला गया है,
जिसे पीकर सिक्ख अमर हो जाते हैं। यदि हम इन लोगों को सरोवर से दूर रखने में कामयाब
हो जाते हैं तो वह दिन दूर नहीं, ये सभी सिक्ख समाप्त हो जाएँगे। जक्रियाखान को
अहसास हुआ कि सिक्खों की गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु तो श्री दरबार साहिब व अमृत
सरोवर ही है शायद काज़ी की बात में कोई तथ्य हो, चलो यह काम भी करके देख ही लेते
हैं। बस फिर क्या था, उसने इस कार्य के लिए दो हजार सिपाही काज़ी अब्दुल रहिमान को
देकर उसी की नियुक्ति अमृत सरोवर पर कर दी, ताकि वह सिक्खों को सरोवर में स्नान करने
से रोकने में सफल हो सके। जब अमृतसर का कोतवाल बनकर काज़ी अब्दुल रहिमान दो हजार
सैनिक के साथ श्री दरबार साहिब जी के परिसर में पहुँचा तो उसने वहाँ श्रद्धालुओं के
आने पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया और जो भी उस समय स्नान अथवा भजन करने में व्यस्त
थे, उन्हें गिरफ्तार करके इस्लाम कबूल करने को कहा, इस्लाम कबूल न करने पर उन्हें
कड़ी यातनाएँ देकर मृत्युदण्ड दिया गया। तद्पश्चात दोण्डी पिटवाई गई किः है कोई ऐसा
सिक्ख ! जो अब अमृत सरोवर में स्नान करके दिखा दे ? इस चुनौती को जत्थेदार शाम सिंह
के शूरवीरों ने स्वीकार किया। इन योद्धाओं में सरदार सुक्खा सिंह व सरदार थराज सिंह
(भाई मनी सिंह जी के भतीजे) अग्रणी थे। एक दिन अमृत वेला भोर के समय में पचास जवानों
के जत्थे ने साथ के रिलवाली दरवाज़े के बाहर पहुँच गये। उन्होंने स्वयँ अमृत सरोवर
में स्नान किया और बहुत ज़ोरों से जयकारे लगाए। जिसे सुनकर शत्रु सुचेत हुआ और उनका
पीछा करने लगा। सिक्खों का पीछा करने वालों में स्वयँ अब्दुल रहिमान और उसका बेटा
भी था, जैसे ही ये लोग रिलवाली दरवाजें के निकट पहुँचे तो वहाँ घात लगाकर बैठे हुए
सिंघों ने इन पर आक्रमण कर दिया। उस घमासान युद्ध में काज़ी अब्दुल रहिमान और उसका
बेटा मारा गया।
![](../100.%20MP3%20Format%20Files/STARTING%20POINTS/65.JPG)