8. शहीदी भाई सती दास जी
तीसरे दिन भाई सती दास जी को बन्दीखाने से बाहर चाँदनी चौक में सार्वजनिक रूप मे
काज़ी ने चुनौती दी और कहा– कि वह इस्लाम स्वीकार कर ले और दुनियाँ की सभी सुख
सुविधाएँ प्राप्त कर ले अन्यथा मृत्युदण्ड के लिए तैयार हो जाए। इस पर भाई सतीदास
जी ने उत्तर दिया कि वह मृत्यु रूपी दुल्हन का बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा हैं
और काज़ी पर व्यँग करते हुए मुस्कुरा दिये। काज़ी बोखला गया और उसने उनको रूई में
लपेटकर जला डालने का आदेश दिया। उसका विचार था कि जीवित जलने से व्यक्ति की आत्मा
दोज़क, नरक को जाती हैं। इस प्रकार गुरूदेव के तीनों सिक्ख साथी हंस-हंसकर शहीदी
पाकर सिख इतिहास में नये दिशानिर्देश व कीर्तिमान की स्थापना कर गये। और आने वाली
पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक मार्ग छोड़ गये। भाई सती दास जी गुरू घर में लेखन का
कार्य करते थे।