1. औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर
अत्याचार
औरँगजेब ने सम्राट बनते ही हिन्दुओं पर अत्याचार प्रारम्भ कर दिये। और सरकारी आदेश
प्रसारित किया गया कि हिन्दुओं के मन्दिरों को शीघ्र धराशाही कर दिया जाये। :2
नवम्बर 1665: ईस्वी को शाही फरमान द्वारा औरँगजेब ने हुक्म दिया कि अहमदाबाद और
गुजरात के परगनों में उसके सिंहासन रूढ होने से पहले कई मन्दिर उसकी आज्ञा से
तहस-नहस किये गए थे, उनका पुर्ननिर्माण कर लिया गया है और मूर्ति-पूजा पुनः शुरू हो
गई है। अतः उसके पहले हुक्म की ही तामील हो। आज्ञा मिलने की देर ही थी कि मन्दिर
फिर से धड़ाधड़ गिराये जाने लगे मथुरा का केशवराय का प्रसिद्ध मन्दिर, बनारस का
गोपीनाथ मन्दिर, उदयपुर के 235 मन्दिर, अम्बर के 66, जयपुर, उज्जैन, गोलकुँडा,
विजयपुर और महाराष्ट्र के अनेकों मन्दिर गिरा दिये गए। मन्दिर तहस-नहस करने पर ही
बस नहीं हुई। 1665 ही के एक अन्य फरमान द्वारा दिल्ली के हिन्दुओं को यमुना किनारे
मृतकों का दाह-सँस्कार करने की भी मनाही कर दी गई। हिन्दुओं के धर्मिक रीति रिवाजों
पर औरँगजेब का यह सीधा हमला था। इसके साथ ही विशेष आदेश इस प्रकार जारी किये गये कि
सभी हिन्दुओं को एक विशेषकर, टैक्स पुनः देना होगा। जिसे जज़िया कहते थे। कुछ नरेशों
को छोड़कर सभी हिन्दुओं को घोड़ा अथवा हाथी की सवारी से वर्जित कर दिया गया। इस
प्रकार के कुछ अन्य फरमान भी जारी किये गये जिससे हिन्दुओं के आत्मसम्मान को ठेस
पहुँचे। इन सभी बातों का तात्पर्य था कि हिन्दू लोग तँग आकर स्वयँ ही इस्लाम
स्वीकार कर लें। तब हिन्दुओं की ओर से इस प्रकार के आदेशों से कई स्थानों पर
विद्रोह हुए इनमें मध्य भारत के स्थान अधिक थे। सरकारी सेना ने विद्रोह कुचल डाले
और हिन्दुओं का कचुमर निकाल दिया। परन्तु सेना को भी कुछ क्षति उठानी पड़ी। अतः
औरँगजेब को अपनी नीति को लागू करने के लिए नई युक्तियों से काम लेने की सूझी और उसने
कूटनीति का रास्ता अपनाया। सन् 1669-70 में उसने पूरी तरह मन बना लिया था कि इस्लाम
के प्रचार के लिए एक ओर से सिलसिलेवार हाथ डाला जाए। उसने इस उद्देश्य के लिए
कश्मीर को चुना। क्योंकि उन दिनों कश्मीर हिन्दू सभ्यता सँस्कृति का गढ़ था। वहाँ के
पण्डित हिन्दू धर्म के विद्धानों के रूप में विख्यात थे। औरँगजेब ने सोचा कि यदि वे
लोग इस्लाम धारण कर लें तो बाकी अनपढ़ व मूढ़ जनता को इस्लाम में लाना सहज हो जायेगा
और ऐसे विद्वान, समय आने पर इस्लाम के प्रचार में सहायक बनेगे और जनसाधारण को दीन
के दायरे में लाने का प्रयत्न करेंगे। अतः उसने इफ़तखार ख़ान को शेर अफगान का खिताव
देकर कश्मीर भेज दिया और उसके स्थान पर लाहौर का राज्यपाल, गवर्नर फिदायर खान को
नियुक्त किया।