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6. कन्हैया मिसल

इस मिसल के जत्थेदार और सँस्थापक सरदार जय सिंह थे। वह भाई खुशहाल जाट के पुत्र थे। आपका गाँव कान्हा काच्छा था जो कि लाहौर नगर से दक्षिण की तरफ लगभग 15 मील पर स्थित है। अतः इस मिसल तथा जत्थे का नाम कन्हैया पड़ गया। इस मिसल के प्रारम्भिक इतिहास के बारे में कहा जाता है कि जब सिक्खों की शहीद होने के काण्डों के वृतान्त भाई खुशहाल जाट ने सुने तो उन्हें भी वीर रस ने प्रभावित किया और वह भी सिक्खी धरण करने का निश्चय करके सरदार कपूर सिंह जी से मिले। उन्होंने भाई खुशहाल की शुभ मँशा देखकर उन्हें अमृतपान करवाया और इस प्रकार उन्हें सिक्खी में प्रवेश करवा दिया। जब आप सिंह सज गये तो आपने अपने क्षेत्र के बहुत से निवासियों को इसी प्रकार अमृत की पोल दिखाई और सभी को तैयार करके सिंह सजा दिया और अपना अलग से एक जत्था बना लिया। बड़ी तथा अति आवश्यक लड़ाइयों में इस जत्थे को ही भेजा जाने लगा। खुशहाल सिंह के पश्चात् जब उनके पुत्र जय सिंह इस जत्थे के जत्थेदार बने तो उन्होंने अपनी वीरता से पँजाब के राज्यपाल मीर मन्नू की मृत्यु का पूरा लाभ उठाया। जल्दी ही उन्होंने अमृतसर के उत्तरी प्रदेश रियाड़की को विजय कर लिया। उसके बाद उन्होंने अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से पँजाब में होने वाली अशान्ति से पूरा पूरा लाभ उठाते हुए गुरदासपुर का जिला और काँगड़ा प्रदेश भी अपने अधीन कर लिया। इसी प्रकार धीरे-धीरे मुकेरियाँ, पठानकोट और हाजीपुर के नगरों को भी अपने अधिकार में कर लिया। उन्नति करते—करते उन्होंने बटाला तथा कलानौर के क्षेत्रों को भी अपने अधिकार में ले लिया। यह क्षेत्र सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया के थे परन्तु उन्हें बलपूर्वक खदेड़कर पँजाब छोड़कर जाने के लिए विवश कर दिया। सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने अपना अधिकार क्षेत्र बदलकर हाँसी, हिसार और सिरसा बना लिया। इस सफलता के पश्चात् सरदार जय सिंह ने गारोटा, हाजीपुर, नूरपुर, दातारपुर के पर्वतीय नरेशों से ‘राखी’ अर्थात खिराज लेना प्रारम्भ कर दिया। अपनी बुलन्दी को और बढ़ाने के लिए राजा सँसारचँद कटोच वालों से काँगड़ा का किला तथा ‘राखी’ लेना था। काँगड़ा समस्त घाटी की चाबी थी। इसके कब्जे से कन्हैया सरदार सर्वशक्तिमान हो गया। काँगड़ा का किला लगभग एक हजार वर्ष पूर्व निर्मित था। राजा सँसारचँद ने काँगड़े के किलेदार सैफ अली खान के विरूद्ध सरदार जय सिंह से सहायता माँगी थी। सरदार जय सिंह स्वयँ काँगड़ा गये। उनके पहुँचते ही सैफ अली खान की अकस्मात् मृत्यु हो गई। सरदार जय सिंह कन्हैया ने सैफ अली के पुत्र जीवन को किला खाली करने के लिए विवश कर दिया और स्वयँ किले के स्वामी बन गए। सँसारचँद बहुत तड़पा, पर मजबूर होकर शाँत हो गया। सँसारचँद ने कन्हैया मिसल की अधीनता स्वीकार करने में ही भलाई समझी। यह घटना सन् 1775 ईस्वी की है। सन् 1777 ईस्वी में जय सिंह कन्हैया ने जस्सा सिंह आहलुवालिया और चढ़त सिंह शुक्रचकिया के साथ मिलकर सम्मिलित गुट स्थापित किया और जस्सा सिंह रामगढ़िया को पराजित करके उसे सतलुज पार भगा दिया। इस प्रकार इन्होंने उसका प्रदेश अपने अधिकार में ले लिया। जयसिंह ने पहाड़ी नरेशों को भी अपने अधीन कर लिया था किन्तु कुछ समय बाद महा सिंह शुक्रचकिया और जयसिंह के बीच मतभेद उत्पन्न हो गया। इस पर महा सिंह शुक्रचकिया ने जस्सा सिंह रामगढ़िया को हिसार प्रदेश से वापिस बुला लिया और उसके सभी प्रदेश जयसिंह कन्हैया से लौटाने के लिए अपनी सहायता का वचन दिया। इस प्रकार जस्सा सिंह रामगढ़िया अपने प्रदेश को लौटाने के लिए शीघ्र ही मध्य पँजाब में पहुँच गया। बटाला नामक स्थान पर जय सिंह कन्हैया के लड़के गुरबख्श सिंह और जस्सा सिंह रामगढ़िया के बीच एक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें गुरबख्श सिंह वीर गति पा गए और कन्हैया मिसल के लोगों की पराजय हुई। समझौते के अनुसार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने वह सभी प्रदेश जो जय सिंह कन्हैया ने उससे छीन लिए थे, वापिस ले लिए। अब बटाला भी उनके अधिकार में आ गया। कुछ समय बाद जय सिंह कन्हैया ने महा सिंह शुक्रचकिया को फिर अपने साथ गाँठ लिया और नूरपुर और चम्बा के राजाओं की सहायता से बटाला लौटाने की कोशिश की किन्तु वह जस्सा सिंह रामगढ़िया से बटाला वापिस न ले सका। जब जय सिंह कन्हैया ने महा सिंह शुक्रचकिया से प्रगाढ़ मित्रता स्थापित करने के लिए अपनी पोती महताब कौर (पुत्री स्वर्गीय गुरबख्श सिंह) का विवाह महाराज रणजीत सिंह से कर दिया जो महा सिंह शुक्रचकिया का पुत्र था। इस विवाह ने बाद में महाराजा की उन्नति के लिए बहुत बड़े साधन जुटाए क्योंकि जब जय सिंह की मृत्यु पर कन्हैया मिसल का सभी प्रबन्ध उसकी पुत्र वधू अर्थात रणजीत सिंह की सास माई सदा कौर के हाथ में आया तो उसने रणजीत सिंह को बहुत सहायता दी, जिससे महाराजा ने लाहौर और अन्य स्थानों पर सुगमतापूर्वक अधिकार कर लिया। कुछ समय तक तो रणजीत सिंह और उसकी सास माई सदा कौर के बीच सम्बन्ध अच्छे रहे परन्तु ज्योंहि उनके आपस में सम्बन्ध बिगड़े तो महाराजा ने अपनी सास को नज़रबन्द कर दिया और कन्हैया मिसल के सभी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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