3. आकस्मिक आक्रमण
फौजदार जैन खान ने सुयोजनित ढँग से सिक्खों पर सामने से धावा बोल दिया और अहमद शाह
अब्दाली ने पिछली तरफ से। अब्दाली का अपनी सेना को यह भी आदेश था कि जो भी व्यक्ति
भारतीय वेशभूषा में दिखाई पड़े, उसे तुरन्त मौत के घाट उतार दिया जाए। जैनखान के
सैनिकों ने भारतीय वेशभूषा धारण की हुई थी। अतः उन्हें अपनी पगड़ियों में पेड़ों की
हरी पत्तियाँ लटकाने के लिए आदेश दिया गया। सिक्खों को शत्रुओं की इस क्षमता का
ज्ञान नहीं था। अतः वे आकस्मिक आक्रमण के कारण बुरी तरह शिकँजे में फँस गए। फिर भी
उनके सरदारों ने धैर्य नहीं खोया। सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया, सरदार शाम सिंह
राठौर सिंधिया तथा सरदार चढ़त सिंह आदि जत्थेदारों ने तुरन्त बैठक करके लड़ने का
निश्चय कर लिया। सिक्खों के लिए सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि उनका सारा सामान, हथियार,
गोला बारूढ और खाद्य सामग्री वहाँ से चार मील की दूरी पर करमा गाँव में था, इसलिए
सिक्ख सेनापतियों ने यह निर्णय लिया कि पहले सामग्री वाले दस्तों से सम्बन्ध जोड़ा
जाए और उसे बरनाला में बाबा आला सिंह के पास पहुँचा दिया जाए क्योंकि उस समय सिक्खों
को एकमात्र बाबा जी से ही सहायता प्राप्त होने की आशा थी। उन्होंने इसी उद्देश्य को
लेकर बरनाला नगर की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और अपने परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने
के लिए उनको अपने केन्द्र में ले लिया। इस प्रकार योद्धाओं की मजबूत दीवार में
परिवारों को सुरक्षा प्रदान करते हुए और शत्रुओं से लोहा लेते हुए आगे बढ़ने लगे। जहाँ
कहीं सिक्खों की स्थिति कमजोर दिखाई देती, सरदार जस्सा सिंह उनकी सहायता के लिए अपना
विशेष दस्ता लेकर तुरन्त पहुँच जाते। इसी प्रकार सरदार चढ़त सिंह और सरदार शाम सिंह
नारायण सिंघिया ने भी अपनी वीरता के चमत्कार दिखाए।