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9. दैवीय नम्रता के पुँज

जब श्री गुरू रामदास साहिब जी के सचखण्ड गमन और श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के गुरूगद्दी पर विराजमान होने का समाचार दूर प्रदेशों में पहुँचा तो वहां की संगत काफिले बनाकर पाँचवे गुरू जी के दशर्नों को उमड़ पड़ी। गुरू जी प्रदेशों से आने वाली संगत के स्वागत के लिए सदैव तत्पर रहते थे। आपको एक दिन सूचना मिली कि काबूल नगर से आने वाली संगत सँध्या तक श्री अमृतसर साहिब जी पहुँच जाएगी। गुरूदेव जी संगत की प्रतीक्षा करते रहे किन्तु संगत नहीं पहुँची। अन्त में आपने मन बनाया कि संगत की सुध-बुध लेने हमें ही चलना चाहिए। आपने एक बैलगाड़ी में भोजन इत्यादि वस्तुएँ लीं और साथ में अपनी पत्नी श्रीमती गँगा जी को चलने को कहा और इस प्रकार रास्ते भर खोज करते-करते आपने उन्हें श्री अमृतसर साहिब जी से पाँच कोस दूर खोज ही लिया। सभी यात्री विश्राम करने के विचार से शिविर बनाकर लेटने की तैयारी कर रहे थे। तभी आपने उनके जत्थेदार से भेंट की और कहा कि हम आपके लिए भोजन-जल इत्यादि की व्यवस्था कर रहे हैं, कृप्या इसे स्वीकार करें। आपने समस्त संगत को भोजन कराया और उनको राहत पहुँचाने के विचार से पँखा इत्यादि किया। कुछ बुजुर्ग बहुत थके हुए थे, उनका शरीर अधिक चलने के कारण पीड़ा के कष्ट को सहन नही कर पर रहा था। अतः गुरू जी ने उनके शरीर को और पैरों को दबाकर सेवा करना शुरू कर दिया। ठीक इसी प्रकार आपकी पत्नी गँगा जी ने बुर्जुग महिलाओं की सेवा की। इस प्रकार रात व्यतीत हो गई। अमृतबेला (ब्रहम समय) में संगत सुचेत हुई और शौच स्नान से निवृत होकर श्री अमृतसर साहिब जी की ओर प्रस्थान कर गए। श्री अमृतसर साहिब जी पहुँचने पर समस्त संगत के दिल में गुरू जी के दर्शनों की अभिलाषा चरम सीमा पर थी। वे गुरू के स्थान पर पहुँचने के लिए जल्दी में थे इसलिए उन्होंने अपने सामान तथा जूतों की देखभाल के लिए उसी रात वाले सेवादार (गुरू) को तैनात कर दिया और स्वयँ गुरूदरबार में उपस्थित हुए। वहाँ कीर्तन तो हो रहा था किन्तु गुरू जी अभी अपने आसन पर विराजमान नहीं थे, पता करने पर मालूम हुआ कि गुरूदेव जी रात में स्वयँ काबूल की संगत की अगवानी करने गए हुए हैं, शायद लौटे नहीं हैं। यह सुनते ही संगत के मुखी सिक्ख सर्तक हुए और उन्होंने पूछा कि कहीं वह युवा जोड़ी तो नहीं तो रात को हमारे लिए खाना लाए थे और रात भर पँखा इत्यादि करके संगत की सेवा करते रहे हैं ? उनका विचार ठीक था कि वह श्री गुरू अरजन देव साहिब जी ही थे। वे सभी कहने लगे कि हमने तो उनको सामान की देखभाल के लिए नियुक्त किया है। जल्दी ही उनको अपनी भूल का अहसास हुआ। वे लौट आए और देखते क्या है कि गुरू जी और उनकी पत्नी संगत के जूते साफ कर रहे हैं। संगत ने गुरू जी के चरण पकड़ लिए और क्षमा याचना की। गुरू जी ने कहा कि इसमें क्षमा माँगने वाली क्या बात है। हमें तो आपकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए पहुँचना ही था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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