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8. श्री गुरू अरजन देव साहिब जी की दिनचर्या

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी ने श्री अमृतसर साहिब जी में गुरू-दरबार की मर्यादा वहीं पहले गुरूजनों के अनुसार ही रखी। आप सूर्योदय होने से तीन घण्टें पहले बिस्तर त्याग देते तदपश्चात शौच-स्नान से निवृत होकर सिँहासन लगाकर प्रभु चरणों में सुरति एकाग्र करके प्रार्थना में लीन हो जाते। जब सूर्योदय होता तो आप साधसंगत के मध्य विराज होकर कीर्तनीय जत्थे से आसा की वार कीर्तन श्रवण करते। आप स्वयँ कीर्तन करना जानते थे और राग विद्या का आपको बहुत अच्छा ज्ञान था अतः आप कभी-कभी स्वयँ भी सिरँदा नामक साज लेकर प्रभु स्तुति में लीन हो जाते। जब रबाबी सत्ता व बलवंड जी कीर्तन की चौकी समाप्त करते तो आप सजे हुए दीवान में ज्ञान देते। आपके प्रवचनों का विषय समय-समय अलग-अलग होता किन्तु प्रवचनों का तत्व सार अधिकाँश यही रहता कि मनुष्यों को प्रकृति के नियमों को समझना चाहिए और उसी का अनुसरण करते हुए बिना किसी हस्तक्षेप के सहज जीवन जीना चाहिए। आप जी कीर्तन को सर्वोतम स्थान देते आपका मानना था कि कीर्तन मन पर नियँत्रण करके विकारों से बचाता है और सुरति को प्रभु चरणों में जोड़ेने का एक अच्छा साधन है जिससे भक्तगण को नाम रूपी अमृत की प्राप्ति होती है और इस प्रकार जब भरपूर दिन चढ़ जाता तो आप जी दरबार की समाप्ति करके लँगर में पधारते और संगत के संग नाश्ता करते। यहाँ से निपटकर आप चल रहे भवन निर्माण के कार्यों की देखरेख में जुट जाते। दुखभँजनी बेरी नामक वृक्ष के नीचे बैठकर सेवकों को निर्देश देते। दोपहर के समय आप जी पुनः संगतों की लँगर व्यवस्था के लिए लँगर में पहुँच जाते। जब सब यात्री अथवा सिक्ख संगत भोजन ग्रहण कर लेती तो आप भी भोजन करते। तदपश्चात आप जी कुछ समय आराम के लिए अपने निजी घर में चले जाते और सँध्या होने से पूर्व पुनः दीवान (दरबार) में पधारते। पहले दूरदराज से आई संगत से कुशलक्षेम पूछते और उनके रहने इत्यादि का प्रबन्ध करते। फिर आप जी सैर करते हुए और सरोवर साहिब जी की परिक्रमा करते। इस प्रकार आप दूर-दूर तक एक दृष्टि पूरे नगर पर डालते और सबकी समस्याएँ सुनते। कुछ एक का तो आप तुरन्त समाधान कर देते। वहाँ से लौटकर सो दरू (रहिरास) की चौकी में भाग लेते और इसके बाद कीर्तन की चौकी होती। कीर्तन की समाप्ति पर दूरदराज से आई संगत से विचारविर्मश होता। गुरू जी उनके सँशयों का समाधान करते और आध्यात्मिक उलझनों को सुलझाने का प्रयत्न करते। इस प्रकार आप जी रात्रि के आराम के लिए अपने निजी गृह में चले जाते।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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