6. भट कवियों का गुरू दरबार में आगमन
श्री गुरू रामदास साहिब जी तेहरवी के समारोह में सम्मिलित होने
के लिए संगत श्री गोइँदवाल साहिब जी में एकत्रित होने लगी, इस संगत के मुखी जनों के
साथ कुछ भट विद्वानों की भेंट हो गई। ये समस्त प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों का भ्रमण कर
रहे थे, किन्तु इनकी जिज्ञासा कहीं भी शान्त नहीं हुई थी। क्योंकि इनको पूर्ण
सत्यगुरू के दर्शन नही हुए जो इन्हें शाश्वत ज्ञान दे सके। वैसे तो पुस्तकीय ज्ञान
वाले बहुत से विद्वान समय-समय पर भेंट हुई परन्तु ब्रहमवेता कहीं दृष्टिगोचर नहीं
हुआ। संगत के प्रमुखों से इन भट विद्वानों को ज्ञात हुआ कि पाँचवे गुरू, श्री गुरू
नानक देव साहिब जी के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए हैं वह प्रत्येक दुष्टि से सम्पूर्ण
अथवा बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी हैं जिनमें आघ्यात्मिक शिखर पर पहुँची हुई दिव्य
ज्योति के अपार दर्शन होंगे। ये भट जो कि अधिकाँश कवि भी थे, दिल में तीव्र जिज्ञासा
लेकर श्री गोइँदवाल साहिब जी गुरू के दर्शनों को उपस्थित हुए। इनकी गिनती ग्यारह
थी। रास्ते में इन्होंने गुरू जी की स्तुति में सिक्खो के जत्थे से अनेकों बातें
सुनी, जिसके आधार पर उनका अनुमान था कि गुरू महाराज की आयु प्रौढावस्था की तो होगी
किन्तु उन्होंने जब गुरू जी को एक नवयुवक के रूप में देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना
न रहा। जब उन्होंने गुरू जी के साथ समीपता प्राप्त की तो उन्होंने अनुभव किया कि
जैसा सत्य गुरू सुना था वैसा ही पाया है। गुरू जी के बड़े भाई पृथीचँद के अड़ियल
व्यवहार को उन्होंने देखा, उसके विपरित श्री गुरू अरजन देव जी सदैव शाँत, शीतल व
गम्भीर बने रहते उनकी मधुरता उनको मँत्रमुग्ध करती चली गई क्योंकि यह समय गुरू जी
के धैर्य की परीक्षा का समय था। इस बीच भटों ने पहले चारों गुरू साहिबानों के विषय
में संगत से प्रयाप्त जानकारी प्राप्त कर ली। इस प्रकार उनके मन पर गुरूजनों के
प्रति बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होंने पाँचों गुरू साहिबानों की स्तुति में काव्य
रचनाएँ लिखीं जो बाद में आदि श्री ग्रन्थ साहिब जी में सँकलित कर ली गईं। इन रचनाओं
को भट साहिबानों के सवैंये कहा जाता है।