43. पृथीचँद का निधन
पृथीचँद को जब यह समाचार मिला कि गुरू अरजन देव जी ने चन्दूलाल की लड़की से रिश्ता
करने से इन्कार कर दिया है तो वह एक बार फिर प्रसन्न हो उठा और फिर से सत्ताधारियों
की सहायता प्राप्त करके गुरूदेव जी का अनिष्ट करने की सोचने लगा। उसने चन्दूलाल को
मिलने की योजना बनाई और उसे एक पत्र लिखा कि वह उससे मिलना चाहता है। कुछ दिनों बाद
जब चन्दूलाल सरकारी दौरे पर लाहौर आया तो उसने पृथीचँद को निमँत्रण भेजा और
विचारविमर्श के लिए आने को कहा। पृथीचँद सभी ओर से निराश हो चुका था। उसे अब एक और
प्रकाश की किरण दिखाई देने लगी थी। जिसकी सहायता से वह गुरू जी का अनिष्ट करना चाहता
था। पृथीचँद अपने गाँव हेहरां से लाहौर चला तो उसने पेट भरकर भोजन किया और कुछ
रास्ते में खाने के लिए रख लिया। घर से कुछ कोस चलने पर पृथीचँद के पेट में तीव्र
पीड़ा उठी। देखते ही देखते उसे उल्टी और दस्त होने लगे। शायद भोजन विषैला था। मार्ग
में कोई उचित उपचार की व्यवस्था नहीं हो पाई। रोग गम्भीर रूप धारण कर गया। इस
प्रकार हैजे के रोग से ग्रसित होकर पृथीचँद की जीवन लीला समाप्त हो गई। जल्दी ही यह
सूचना गुरू जी को मिल गई कि आपके बड़े भाई की अकस्मात मौत हो गई है। वह तुरन्त हेहरां
गाँव पहुँचे और भाई की अँत्येष्टि क्रिया में भाग लिया और भाभी व भतीजे मेहरबान को
शोक प्रकट किया।