41. श्री हरिमन्दिर साहिब जी में श्री
आदि बीड़ साहिब जी का प्रकाश
जब आदि श्री बीड़ साहिब जी के सम्पादन का कार्य सम्पन्न हो गया तो गुरू जी ने अपने
सभी मिशनरियों यानि कि मसँदों को सन्देश भेजा कि वह इसका प्रकाश 30 अगस्त 1604 ईस्वी
को श्री हरिमन्दिर साहिब (दरबार साहिब) में श्री अमृतसर साहिब जी में प्रतिष्ठित
करेंगे। अतः समस्त संगत उपस्थित हो। निश्चित तिथी पर गुरू जी ने बाबा बुडढा जी के
सिर पर मूल ग्रन्थ साहिब जी की प्रति को उठाकर नँगे पाँव पैदल श्री अमृतसर साहिब जी
चलने का आदेश दिया और स्वयँ पीछे-पीछे चँवर करते हुए चलने लगे। समस्त संगत ने हाथ
में साज लिए और साथ-साथ शबद गायन करते हुए गुरू जी का अनुसरण करने लगे। इस प्रकार
वे आदि बीड़ साहिब जी की मूल प्रति को श्री रामसर साहिब से श्री अमृतसर साहिब (श्री
हरिमन्दिर साहिब) में ले आए। गुरू जी ने श्री हरिमन्दिर साहिब के केन्द्र में आदि
बीड़ साहिब जी की स्थापना करके बीड़ को प्रकाशमान किया और स्वयँ एक याचक के रूप में
बीड़ साहिब के सम्मुख खड़े होकर अरदास की। तदपश्चात बाबा बुडढा जी से कहा कि वे आदि
बीड़ साहिब के लगभग मध्य से कोई भी शब्द पढ़ें यानि कि वाक लें। बाबा बुडढा जी ने गुरू
आदेश अनुसार आदि श्री ग्रन्थ साहिब जी से सबसे पहला हुक्मनामा लियाः.
सूही महला 5
संता के कारजि आपि खलोइआ हरि कंमु करावणि आइआ राम ।।
धरति सुहावी तालु सुहावा विचि अमृत जलु छाइआ राम ।।
अमृत जलु छाइआ पूरन साजु कराइआ सगल मनोरथ पूरे ।।
जै जै कारु भइआ जग अंतरि लाथे सगल विसूरे ।।
पूरन पुरख अचुत अबिनसी जसु वेद पुराणी गाइआ ।।
अपना बिरदु रखिआ परमेसरि नानक नामु धिआइआ ।। अंग 783
जब सभी औपचारिकताएँ सम्पूर्ण हो गई तो गुरू जी ने समस्त संगत को
आदेश दिया कि वे सभी आदि ग्रन्थ साहिब के समक्ष नतमस्तक हों और घोषणा की कि यह
ग्रन्थ समस्त मानव समाज के लिए सँयुक्त रूप में कल्याणकारी है। इस ग्रन्थ में किसी
भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है। जो भी मनुष्य इसे दिल से पढ़ेगा अथवा विचारेगा,
वह सहज ही इस सँसार रूपी भवसागर से पार हो जाएगा। अतः आज से संगत ने गुरू शब्द के
भण्डार को हम से अधिक सम्मान करना है। गुरू जी ने बाबा बुडढा जी को पहला ग्रन्थी
नियुक्त किया। दिन भर संगतों का दर्शनार्थ ताँता लगा रहा। रात्रि को बाबा बुडढा जी
ने गुरू जी से आज्ञा माँगी कि इस समय आदि श्री बीड़ साहिब जी को किस स्थान पर ले जाया
जाए तो आपने कहा कि श्री ग्रन्थ साहिब जी का सुखासन स्थान हमारा निजी विश्राम स्थान
ही होगा। ऐसा ही किया गया। गुरू जी ने उस दिन से श्री आदि ग्रन्थ साहिब के बगल में
फर्श पर अपना बिस्तर लगवा लिया और आगामी जीवन में वह ऐसा ही करते रहे।