30. सुलबी खान की हसन अली द्वारा हत्या
सम्राट अकबर की सेना में सुलही खान और उसका भतीजा सुलबी खान सैनिक अधिकारी थे।
पृथीचँद राजनैतिक शक्ति से श्री गुरू अरजन देव साहिब जी को परास्त करना चाहता था।
अतः वह अपने मसँदों द्वारा कई बार इन अधिकारियों से मिला और उनसे मित्रता स्थापित
करने के लिए उन्हें कई बार बहुमूल्य उपहार भेंट किए। साँठ-गाँठ में पृथीचँद ने यह
सुनिश्चित करवा लिया कि अवसर मिलते ही वह गुरू जी का अनिष्ट कर देंगे। किन्तु उनके
पास ऐसा करने का कोई कारण न था, क्योंकि पृथीचँद सम्पति का भाग लेकर दस्तावेज गुरू
जी को सौंप चुका था। अतः उन्होंने एक काल्पनिक कहानी बनाई कि पृथीचँद के लड़के
मेहरबान को श्री गुरू अरजन देव साहिब जी ने गोद लिया हुआ था, क्योंकि उनके उन दिनों
कोई सन्तान नहीं थी। अतः अब उनको चाहिए कि वह मेहरबान को अगला गुरू सुनिश्चित करें
और मुकदमा लाहौर की अदालत में पेश किया। उत्तर में गुरू जी ने कहा कि गुरू पदवी किसी
की धरोहर की वस्तु नहीं होती। यह तो परमेश्वर का प्रसाद है, अर्थात रूहानीयत का एक
करिश्मा होता है। इसलिए यह सेवकों में से किसी को भी मिल सकती है। उत्तर उचित था,
इसलिए मुकदमा खारिज हो गया। किन्तु पृथीचँद ने एक और याचिका दी कि मेरे लड़के को
सिक्खी सेवकों से होने वाली आय में से आधी मिलनी चाहिए। इस बार भी गुरू जी ने उत्तर
भेजा कि सिक्खी सेवकों की आय भी तत्कालीन गुरू पदवी प्राप्त व्यक्ति की ही होती है,
क्योंकि वह तो सेवकों द्वारा प्रेम और श्रद्धा के पात्र बनने से सहज प्राप्त होती
है। यह कोई लगान तो है नहीं, जिसे बलपूर्वक प्राप्त किया जा सके अथवा अधिकार बताया
जा सके। यह उत्तर भी उचित था। न्यायाधीश ने यह याचिका भी खारिज कर दी। परन्तु
पृथीचँद अड़ियल टट्टू था। उसने एक अन्य याचिका दी कि अरजन देव ने मेहरवान को अपना
दत्तक पुत्र माना है। अतः उसको आधी सम्पति मिलनी चाहिए। इस याचिका के उत्तर में गुरू
जी ने उत्तर भेजा कि हमारे सभी पुत्र हैं। हमने सभी से प्यार किया है। फिर भी हमने
किसी को लिखित रूप में दत्तक पुत्र होने की घोषणा नहीं की। यदि मेहरवान हमें अपना
पिता मानता है, तो उसे हमारे पास रहना चाहिए। सम्पति अपने आप समय आने पर मिल जाएगी।
उत्तर यह भी उचित था। इसलिए न्यायधीश ने सुझाव दिया कि तुम्हारे पास कोई लिखित
दस्तावेज नहीं। अतः प्यार-मौहब्बत से ही सम्पति प्राप्त करो। किन्तु पृथीचँद को
सन्तोष तो था नहीं। अतः उसने बल से सम्पति बँटवाने की योजना बना डाली।
पृथीचँद दिल्ली गया। वहाँ उसने सुलबी खान को उकसाया कि वह श्री
अमृतसर साहिब जी पर आक्रमण करे और सैनिक बल से श्री अरजन देव साहिब जी को पुनः
बटवारे के लिए विवश करे या वहाँ से सदैव के लिए बेदखल कर दे। सुलबी खान भाइयों की
फूट का लाभ उठाने के लिए अपनी सैनिक टुकड़ी लेकर श्री अमृतसर साहिब चल पड़ा। रास्ते
में जालन्धर नगर के उस पार व्यासा नदी के किनारे उसे एक निष्कासित अधिकारी मिला और
उसने पिछले वेतन के भुगतान के विषय में सुलबी खान से आग्रह किया। किन्तु सुलबी खान
ने अभिमान में आकर वेतन के बदले उसे भद्दी गालियाँ दे डाली। इस पर वह भूतपूर्व
सैनिक अधिकारी, जिसका नाम सैयद हसन अली था, आत्मसम्मान को लगी ठेस सहन नहीं कर पाया।
उसने तुरन्त म्यान से तलवार निकाली और क्षण भर में सुलबी खान का सिर कलम कर दिया और
स्वयँ वहाँ से भागकर व्यासा नदी के दलदल क्षेत्र में लुप्त हो गया। सरदार के अभाव
में सेना लौट गई। इस प्रकार पृथीचँद की यह योजना निष्फल हो गई और वह भाग्य को कोसता
रहा।