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27. श्री ननकाणा साहिब जी के दर्शन

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी ने अनुभव किया कि ऋतु बदलने के साथ लाहौर निवासियों की हालत में बहुत सुधार हुआ है। प्रकृति ने भी वर्षा इत्यादि का उपहार देकर जनसाधारण को राहत पहुँचाई थी। अतः आप जी ने मन बनाया कि श्री गुरू नानक देव साहिब जी के प्रकाश स्थान श्री ननकाना साहिब जी के दर्शन कर लिए जाने चाहिए। आप जिला शेखुपुरा पहुँचे। वहाँ से गाँव राए भोएं की तलवँडी पहुँचे। वहाँ आपने पाया कि स्थानीय श्रद्धालूओं ने श्री गुरू नानक देव साहिब जी के जन्म स्थान वाले श्री मेहता कल्याण चन्द जी के भवन को धर्मशाला का रूप दिया हुआ है और वहाँ समय-समय पर बहुत संगते एकत्रित होती हैं। आप जी ने स्थानीय संगत से विचारविमर्श करके उस धर्मशाला का आधुनिकीरण करने की योजना बनाई। संगत के सहयोग से कार्य तीव्र गति से प्रारम्भ हुआ। गुरू जी के वहाँ रहते मूल ढाँचा तैयार हो गया। गुरू जी प्रतिदिन संगत को अपने प्रवचनों से कृतार्थ करते। अड़ौस-पड़ौस के क्षेत्रों की संगत का श्री ननकाना साहिब जी में खूब जमावड़ा हो गया। बहुत से श्रद्धालू आप से विनम्र निवेदन करने लगे कि आप उनके देहातों में भी पधारें, जिससे स्थानीय लोग जो कि दकियानूसी परम्पराओं से ग्रस्त हैं और अपना शोषण करवा रहे हैं। उनको भी सहज जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन मिल सके। गुरू जी ने सबको धीरज बँधाया और कहा कि प्रभु की इच्छा हुई तो मेरा प्रयास यही रहेगा कि अधिक से अधिक क्षेत्रों में भ्रमण हो सके। भाई गुँदारा जी अपने गाँव की पँचायत लेकर आपके समक्ष उपस्थित हुए। गाँव मदर की पँचायत का अनुरोध इतना भावपूर्ण था कि गुरू साहिब जी उनके आग्रह को टाल नहीं सके और आप जी संगत के साथ मदर गाँव पहुँच गए। स्थानीय जनता ने आपका भव्य स्वागत किया। आपके प्रवचनों के लिए आपको एक मँच पर स्थान दिया गया। गुरू जी ने समस्त जिज्ञासुओं को सम्बोधन करते हुए कहा कि हमारा मूल लक्ष्य इस मानव चोले को सफल करना है। इसके लिए हमारे पास एक सर्वश्रेष्ठ युक्ति है कि हम सभी घर-गृहस्थ में रहते हुए केवल अपने मन को प्रभु चरणों में जोड़े रखें यानि हमें अपनी सुरती सदैव निराकार पारब्रहम परमेश्वर के संग जोड़े रहना है और समस्त गृहस्थ के कार्य निर्विघ्न करते रहना है। इसके अतिरिक्त इसके लिए हमें किसी भी प्रकार का आडम्बर रचने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी और आपने फरमायाः

नानक सतिगुरि भेटिऐ, पूरी होवै जुगति ।।
हसंदिया खेलदिया पैनदिआ खावदिआ विचे होवै मुकति ।।
वार गुजरी, महला 5, अंग 522

यथाः

उदमु करेदिआ जीउ तूं कमावदिआ सुख भुंचु ।।
धिआइदिआ तूं प्रभ मिलु नानक उतरी चिंत ।।
वार गुजरी महला 5, अंग 523

आप जी द्वारा दर्शाया गया जीवन मुक्ति मार्ग सहज था इसलिए सभी वर्गों के श्रोताओं के मन को भा गया क्योंकि आम समाज में इसके विपरीत मान्यताएँ प्रचलित थीं कि साँसारिक कार-व्यवहार में मन प्रभु चरणों में स्थिर नहीं हो सकता। भाई गुँदारा जी बहुत ऊँची आत्मिक अवस्था वाले व्यक्ति थे। उन्होंने गुरू जी के अतिथि सत्कार में कोई कोर-कसर नहीं रहने दी। उनके गले पर हजीर रोग के कारण गाँठें बनी हुई थीं। उन्हें इस रोग के कारण दर्द भी रहता था। किन्तु वह निष्काम सेवा भाव में जुटे रहते थे। उनके परिवार के सदस्यों ने उनसे कहा कि आप गुरू जी से देह अरोग्य होने के लिए याचना करे। किन्तु भाई जी बहुत त्यागी किस्म के व्यक्ति थे। उनका मानना था कि इस देह के लिए स्वस्थ होने की याचना क्यों करूँ जबकि मैं जानता हूँ कि यह नश्वर है। यदि मैंने गुरू जी से याचना की भी तो आध्यात्मिक दुनियाँ की किसी अनमोल वस्तु की याचना करूँगा, जिसकी प्राप्ति पर फिर आवागमन का चक्र समाप्त हो जाए यानि कि फिर पुनः जन्म न हो। गुरू जी ने उसका रोग भी देखा और निष्काम सेवा भक्ति भाव भी, अतः उन्होंने अपने प्रिय शिष्य के लोक-परलोक दोनों सवार दिए। भाई जी का हजीर रोग भी ठीक हो गया।

गुरू जी को जम्बर गाँव की सँगत अपने यहाँ ले गई। वहाँ के नागरिकों की समस्याएँ देखकर आप जी ने एक निःशुल्क दवाखाने की आधारशिला रखी। वहाँ पर पेयजल की भी बहुत कमी थी, स्थानीय कुँओं का जल खारा था। अतः वहाँ आप जी ने एक विशेष स्थान चुनकर समस्त संगत के साथ मिलकर प्रभु चरणों में प्रार्थना की और नया कुँआ खुदवाना प्रारम्भ किया। प्रभु कृपा से इस नये कुएँ का जल मीठा निकला, जिससे स्थानीय लोगों की साध पूर्ण हो गई। इसी गाँव में एक साहूकार रहता था, इसे कूकर्मों के कारण कुष्ठ रोग हो गया था। उस साहूकार संतू के परिजन आपके समक्ष प्रार्थना लेकर उपस्थित हुए कि कृपया आप संतूशाह के रोग का निवारण करें। गुरू जी ने सबको साँत्वना दी और कहा कि उसे हमारे बनाए गए कुष्ठ रोगी आश्रम, तरनतारन ले जाएँ वहीं इसकी उचित देखभाल तथा उपचार ठीक रहेगा। जैसे ही समाचार फैला कि जम्बर गाँव वालों को मीठे जल का स्त्रोत मिल गया है पड़ौसी गाँव चूणिया के निवासी भी बहुत बड़ी आशा लेकर गुरू दरबार में हाजिर हुए और विनती करने लगे, हे गुरूदेव ! हमारा भी कष्ट निवारण करें। हमारे गाँव में भी पेयजल की सदैव कमी बनी रहती है। दयालु दया के सागर गुरू जी उन पीड़ितों को राहत देने उनके गाँव पहुँचे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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