26. भाई बिधिचँद जी
एक कुख्यात चोर एक बार अर्धरात्रि को एक गाँव से वहाँ के किसानों की कुछ भैंसे,
मवेशी घरों से खोलकर हाँकता हुआ किसी अज्ञात स्थान पर उन्हें बेचने के विचार से ले
उड़ा। जब भोर हुई तो किसानों ने पाया कि उनके मवेशी चोरी हो गए हैं। वे तुरन्त एकत्र
हुए और हाथ में लाठियाँ लिए चोर की तलाश में निकल पड़े। वे भैसों तथा चोर के पदचिन्हों
को आधार मानकर आगे बढ़ते चले जा रहे थे। जल्दी ही चोर का अहसास हो गया कि मैं अब
किसानों की पकड़ में आने वाला हूँ। उसने समस्त भैसों को एक तालाब में हाँक दिया और
स्वयँ वहाँ से भागकर निकट की धर्मशाला में शरण ली। इस समय वहाँ हरियश हो रहा था और
भक्तगण श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के प्रवचन सुन रहे थे (आप जी इन दिनों मानव
कल्याण हेतु भ्रमण करते हुए जिला जालँधर के एक गाँव में पधारे हुए थे) उस समय आपने
कहाः
चोर की हामा भरे न कोई ।।
चोरू कीआ चंगा किउ होई ।।
आपने अपने प्रवचनों में कहाः मनुष्यों को अपनी जीविका विवेक
बुद्धि से अर्जित करनी चाहिए जो भी व्यक्ति अधर्म के कार्य करके अपना अथवा अपने
परिवार का पोषण करता है वह समाज में आदर का स्थान प्राप्त नहीं कर सकता। आज नहीं तो
कल कभी न कभी ऐसा समय आता है जब रहस्य खुल जाता है और उस व्यक्ति को अपमानित होना
पड़ता है। यह तो इस सँसार की बातें हैं किन्तु आध्यात्मिक दुनियाँ में ऐसे व्यक्ति
अपराधी होने के कारण पश्चाताप में जलते हैं और उनका स्थान गौण हो जाता है। जब चोर
ने यह प्रवचन सुनें तो उसको अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। अब वह मन ही मन प्रार्थना
करने लगा कि हे गुरूदेव ! यदि मुझे इस भँयकर भूल से मुक्ति दिलवा दें, तो मैं शपथ
लेता हूँ कि फिर कभी चोरी नहीं करूँगा। चोर अराधना में खो गया। उसका कठोर दिल संगत
के प्रभाव से क्षण भर में पिघलकर मोम हो गया और नेत्रों में आँसूओं की घारा
प्रवाहित होने लगी। जब उसके अतःकरण की शुद्धि हुई तभी उस पर गुरू की कृपा हुई और
उसका कायाकल्प हो गया। वह चोर से साधु बन गया। इतने में किसानों का वह समूह, पद
चिन्हों के सहारे गुरू दरबार में पहुँच गया। उन्होंने गुरू जी को चोर के वहाँ
पहुँचने की सूचना दी। इस पर गुरू जी ने कहा कि आपको अपना सामान मिल गया है क्या ?
किसानों ने उत्तर दिया, हजूर ! वह तो पास के तालाब में है। गुरू जी ने उन्हें
परामर्श दिया जाओ पहले अपने माल को जाँच परख लो। वह गुरू का आदेश मानकर तालाब पर
पहुँचे और बहुत ही चकित हुए वहाँ पर उनकी भैंसे नहीं थीं बल्कि कोई अन्य भूरे रँग
की भैंसे थीं जबकि इनकी भैंसो का रँग काला था। वे सभी अपना सा मुँह लेकर लौट गए।
किसानों के लौट जाने पर गुरू जी ने चोर को अपने पास बुलाया। यह चोर जिसका नाम
बिधिचँद था संगत में दुबका हुआ आँखें मींचे बैठा था। गुरू जी के सम्मुख होते ही
बिधिचँद ने उनके चरणों पर शीश धर दिया और क्षमा याचना करने लगा। गुरू जी ने उसे कहा
कि क्षमा तो तभी मिलेगी जब तुम इन भैसों को उसी प्रकार लौटा दोगे, जिस प्रकार लाए
थे और आइन्दा से इन कुकर्मों से तौबा करोगे। बिधिचँद ने आश्वासन दिया कि वह अब आपके
सभी आदेशों का पूर्ण निष्ठा से पालन करेगा और कभी भी अपराधी का जीवन व्यतीत नहीं
करेगा।
इस घटना के बाद भाई बिधिचँद जी श्री गुरू अरजन देव साहिब जी की
सेवा मे उनके अनन्य सिक्ख के रूप में रहने लगे।