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24. बाबा बुडढा जी के जन्म स्थल पर गुरू जी का आगमन

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी से एक दिन बाबा बुडढा जी ने अनुरोध किया कि आप हमारे पूर्वजों के निवास स्थान पर अवश्य ही चलें। वहाँ की स्थानीय संगत आपके दर्शन-दीदार की अभिलाषा रखती है। गुरू जी ने बाबा बुडढा जी का आग्रह तुरन्त स्वीकार कर लिया और बाबा जी के पुश्तैनी ग्राम रामदास पहुँचे। वहाँ की संगत से आपका भव्य स्वागत किया और आपसे सहज जीवन जीने की युक्ति पूछी ? इस पर गुरू जी ने उत्तर में यह शबद उचारण कियाः

सुख सहज आनंद घणा हरि कीरतनु गाउ ।।
गरह निवारे सतिगुरू दे आपणा नाउ ।।


गुरू जी ने कहाः यदि आप गृह-कलेश से मुक्ति चाहते हैं तो उसका सहज सरल उपाय यही है कि हरि नाम का सिमरन करें अथवा हरियश में सँलग्न हों, प्रभु की स्तुति में कीर्तन करें। सभी प्रकार के आनन्द स्वयँ की प्राप्त होते चले जाएँगे। एक सिक्ख ने अपनी समस्या बताते हुए कहाः हे गुरूदेव ! यहाँ के स्थानीय पण्डित हमें बताते हैं कि सभी प्रकार की सुख शान्ति ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर करती है। गुरू जी ने समस्त संगत को सम्बोधन करके कहाः हमें श्री गुरू नानक देव साहिब जी ने सर्वोत्तम दान "नाम दान" का अद्वितीय उपहार दिया है। यह नाम रूपी धन महाशक्ति है, जिसके आगे शगुन-अपशगुन, ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव नगण्य हो जाता है।

सगन अपसगन तिस को लगहि जिस चीत न आवै ।।
तिस जम नेड़ि न आवई जो हरि प्रभ भावै ।।
पुन्न दान जत तप जेते, सभ ऊपरि नाम ।।
हरि हरि रसना जो जपै तिस पूरन काम ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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