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21. एक माता की प्रेमपूर्वक भेंट

श्री गुरू रामदास साहिब जी द्वारा मसँद (मिशनरी) प्रथा बहुत सफलतापूर्वक चल रही थी। ऊँचे आचरण वाले मसँद स्थान-स्थान पर जाकर साधारण जिज्ञासुओं को गुरमति सिद्धान्तों को अपने समागमों द्वारा समझाते थे और सिक्खी प्रचार करते थे। श्रद्धालू लोग उन्हे गुरू जी का प्रतिनिधि जानकर अपनी आय का दसवाँ हिस्सा गुरूघर के कार्यों के लिए देते थे। यह लोग प्रत्येक भक्तजन की दी हुई भेंट बहुत सँजोकर सुरक्षित रखकर गुरू दरबार में पहुँचा देते थे। एक बार एक मसँद प्रचार दौर पर था कि उसने एक विशेष ग्राम में गुहार लगाई कि वह गुरू जी के पास वापिस लौट रहा है। अतः आप लोग अपना-अपना यथाशक्ति योगदान गुरूघर के नवनिर्माण में डालें। एक ग्राम सिक्खों का था। सभी ने कुछ न कुछ गुरू कोष के लिए दिया। वहाँ एक वृद्ध माता भी अकेली रहती थी। उसके पास गुरू जी के कोष में डालने के लिए कुछ भी नहीं था किन्तु दिल मे इच्छा थी कि मैं कुछ अँश भेंट रूप में दूँ। वह माता कल्पना कर रही थी कि वह मसँद गुहार लगाता हुआ हाजिर हुआ और बोला कि माता जी कुछ गुरू दरबार में भेजना हो तो भेज दें। माता जी के पास कुछ था ही नहीं, वह उस समय अपने आँगन में झाड़ू लगा रही थी। जब इक्टठा किया हुआ कूड़ा बाहर फैंकने लगी तो तभी मसँद सिक्ख ने सहजभाव से अपनी झोली आगे कर दी। वह कूड़ा बहुत प्रेमपूर्वक श्रद्धा से दी गई भेंट मानकर एक पोटली में बाँध लिया। इस पर माता जी को भूल का अहसास हुआ, उसके नेत्रों से विरह के आँसू छलक पड़े, किन्तु मसँद जी तो जा चुके थे।

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के दरबार में यह मसँद सभी श्रद्धालूओं की भेंट लेकर उपस्थित हुआ और सभी भेंट गुरू जी के कोषाध्यक्ष को सौंप दी किन्तु गुरू जी ने उसे विशेष रूप से बुलाकर पूछा कि मसंद जी, आपने सभी भेंट जमा करवा दी है, कोई रह तो नहीं गई। मसंद ने उत्तर दिया कि जी हां, मैंने ऐसा ही किया है। गुरू जी ने उसे पुनः सतर्क करते हुए कहा कि देखो, कोई भेंट रह तो नही गई। मसँद जी ने सोचकर कहा कि हाँ गुरूदेव ! मैंने सभी वस्तुओं का हिसाब दे दिया है। इस पर गुरू जी ने उसे कहा वह पोटली कहाँ है, जो एक माता जी ने विशेष रूप से हमारे लिए दी है। तब मसँद जी को याद आया कि एक माता जी ने सफाई करते समय कूड़ा ही दिया था। वह कूड़ा ले आए। गुरू जी ने उसे छाँटने का आदेश दिया, उस कुड़े में से एक बेरी की गुठली निकली, जिसे गुरू जी प्रेम भेंट जानकर दर्शनी के एक छोर पर बीज दिया, जो कि समय पाकर एक वृक्ष का रूप धारण कर गई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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