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भाई छज्जूशाह व्यापारी
भाई छज्जूशाह जी
लाहौर नगर में एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। आपका मुख्य व्यवसाय साहूकारी का था। आप
हुण्डियों के आदान-प्रदान
में बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके थे। प्रायः आपके पास लोग अमानती सामान
भी रखा करते थे। एक बार एक काबुल नगर का पठान व्यापारी आपके पास आया और उसने आपको
एक सौ चौवालीस (144) मौहरें अमानती रखने को दी और कहा
कि
मैं अभी दिल्ली
व्यापार के लिए जा रहा हूँ। कृप्या रख लीजिए। मै। समय आने पर आपसे ले लूँगा।
छज्जूशाह जी ने वह थैली उठाकर अमानती सामान के सँदूक में रख दी और फिर से अपने
हिसाब-किताब
देखने में व्यस्त हो गए। वास्तव में वह इस समय हिसाब के आंकड़ों में इतने व्यस्त थे
कि उन्होंने पठान पर विशेष ध्यान नहीं दिया। पठान दिल्ली चला गया। कुछ माह में वह
लौटकर आया तो भाई छज्जू से मिला और उनसे वहीं मोहरों वाली थैली की माँग की। भाई
छज्जू जी ने आदर से उसे बिठाया और उसके नाम को अमानती सूचियों में देखना प्रारम्भ
किया परन्तु उन्होंने पाया कि उसका नाम कहीं नहीं है। इस पर उस पठान व्यापारी ने
अपनी थैली की जानकारी के लिए विशेष विवरण दिए और कहा
कि
मैंने आपकी बहुत प्रशँसा सुनी थी कि
आप बहुत सच्चे,
नेक और ईमानदार व्यक्ति हैं इसलिए
मैने आप पर विश्वास किया था,
किन्तु अब आप ना कर रहे हैं।
उत्तर में भाई छज्जू शाह जी ने कहा कि मैं कभी भी अमानत में खियानत नही करता,
यह मेरा धर्म है। जब तुमने
अमानती कोई वस्तु हमारे पास रखी ही नहीं तो वह हम कहाँ से दें। इस बात पर दोनों
पक्षों का टकराव हो गया,
झगड़ा
बढ़ गया क्योंकि पठान धन का मोह कैसे त्याग सकता था। कुछ सुझवान व्यक्तियों ने इस
मुकदमें को न्यायालय में ले जाने के लिए कहा। पठान ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
अदालत ने पठान से कोई गवाही अथवा सबूत माँगा। उत्तर में पठान ने कहाः
मैंने को
छज्जू शाह को भक्त जानकर उस पर पूर्ण विश्वास किया था और कोई रसीद भी नहीं ली थी।
भाई छज्जू शाह से पूछताछ की गई।तो उनका उत्तर थाः मैं किसी से धोखा अथवा बेइमानी
नहीं करता। मेरे पास इस व्यक्ति की कोई अमानत नहीं है। सबूत के अभाव में न्यायाधीश
ने दोनों पक्षों को भयभीत करने के विचार से एक युक्ति सुझाई कि तुम दोनों का निर्णय
भगवान पर छोड़ देते हैं क्योंकि तुम दोनों उस प्रभु,
दिव्य ज्योति पर पूर्ण विश्वास
करते हो। अतः एक गर्म तेल की कड़ाही में शपथ लेकर तुम दोनों हाथ डालो जो सच्चा होगा,
उसका हाथ नही जलेगा,
झूठे
का जल जाएगा। इस प्रकार निर्णय हो जाएगा।
भाई छज्जू
शाह गुरू जी का शिष्य था,
उसे अपनी सच्चाई और ईमानदारी
पर नाज था। दूसरी ओर पठान भी सच्चा था,
किन्तु वह गर्म तेल में हाथ डालने से भय खा गया और डगमगाकर उसने अपना मुकदमा वापिस
ले लिया। इस प्रकार मुकदमा खारिज हो गया। कुछ दिन व्यतीत हो गए। एक दिन भाई छज्जू
जी अपनी दुकान की सफाई करवा रहे थे तो वह थैली कहीं नीचे दबी हुई मिल गई। थैली को
देखकर छज्जू जी को ध्यान आ गया कि यह थैली उस पठान की ही है,
जो हमारे ऊपर
मुकदमें का कारण बनी थी। अब भाई छज्जू जी प्रायश्चित करने लगे ओर जल्दी ही उन्होंने
उस पठान को खोज लिया,
वह अभी अपने
वतन नहीं लौटा था। भाई जी ने उससे क्षमा याचना करते हुए उसकी अमानत वह मोहरों वाली
थैली लौटा दी। किन्तु पठान ने सच्चे होने पर बहुत हीनता का अनुभव किया था। थैली
मिलने पर वह तिलमिला उठा। उसने फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया और न्याय की दुहाई
दी। न्यायधीश ने समस्त घटनाक्रम को ध्यान से सुना और भाई छज्जू शाह से प्रश्न किया
कि जब पहला निर्णय आपके पक्ष में हो गया था तो अब आपने यह सिक्कों की थैली क्यों
लौटाई। इस पर भाई छज्जू जी ने उत्तर दियाः कि मैं श्री गुरू अरजन देव जी का सिक्ख
हूँ,
इसलिए झूठा व्यापार,
धोखा,
बेइमानी इत्यादि नहीं करता
क्योंकि मैं सदैव अपने गुरू को साक्षी मानता हूँ। परन्तु यह थैली मेरे ध्यान से उतर
गई थी,
इसमें मेरा कोई छलकपट नहीं था। अतः
मुझे क्षमा किया जाए। अदालत ने भाई जी को क्षमा दे दी। परन्तु पठान सन्तुष्ट नहीं
हुआ। उसने छज्जू शाह जी से पूछा कि मैं सच्चा था,
तब भी गर्म तेल का भय देखकर
भाग गया जबकि तुम झूठे थे,
तुम्हें डर क्यों नहीं लगा
?
तुम में इतना
आत्मविश्वास कहाँ से आ गया। इस पर भाई जी ने कहाः
मुझे अपने गुरू पर पूर्ण भरोसा
है। मैं उन्हीं का आश्रय लेकर प्रत्येक कार्य करता हूँ। पठान की जिज्ञासा और बढ़ गई,
वह चाहने लगा कि मैं उस पीर-मुर्शद
(गुरू) के दीदार करना चाहता हूं जिसके शार्गिदों में इतनी आस्था है कि वह विचलित
नहीं होते। भाई छज्जू जी पठान के आग्रह पर उसे श्री अमृतसर साहिब जी लेकर गुरू
दरबार में उपस्थित हुए। गुरू दरबार में समस्त संगत के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई उत्तर
में गुरूदेव ने पठान के सँशय का समाधान करते हुए कहा
कि
जो व्यक्ति स्वयँ को अपने इष्ट को
समर्पित कर देते हैं और चिंतन मनन में लीन रहते हैं,
उनमें उनकी अराधना आत्मविश्वास
उत्पन्न कर देती है,
जिससे वह कभी भी डगमगाते नहीं। इसके
विपरीत जो व्यक्ति स्वयँ को इष्ट को समर्पित नहीं होते और सिमरन भजन में मन नही
लगाते,
वह स्थान-स्थान पर
डगमगाते हैं।