17. जलोधर रोग का निवारण
सम्राट अकबर के सलाहकार जिनको उपमन्त्री की उपाधी से सम्मानित किया गया था और जिनका
नाम वजीर खान था, जलोधर रोग से पीड़ित रहने लगे। वह अपने उपचार के लिए अपने निवास
स्थान लाहौर आए और बहुत उपचार किया किन्तु रोग का निवारण नही हुआ। वह स्थानीय पीर
साँईं मियाँ मीर जी के पास गए कि वह उनके रोग निवारण के लिए अल्लाह से ईबादत करें।
इस पर साईं जी ने उन्हें साँत्वना दी और कहा कि मैं आपको एक कलाम सुनने को कहुँगा
जो आप नित्य प्रातःकाल सुनें। अल्लाह ने चाहा तो आपको रोग से राहत मिलेगी। वजीर खान
ने तुरन्त उनका परामर्श स्वीकार कर लिया और कहा कि वह कलाम सुनाएँ। साँईं जी ने उस
सिक्ख को बुला लिया जो नित्यप्रति नियम से सुखमनी साहिब पढ़ता था और उससे कहा कि आप
कृपया वजीर खान को सुखमनी साहिब जी का पाठ सुनाया करें, यह रोग ग्रस्त हैं और इनका
मन बेचैन रहता है। कम से कम मन तो शान्त अवस्था में आ जाए। यदि मन को शान्ति मिल गई
तो शरीरक रोग भी हट जाएगा। इस सिक्ख का नाम भाग सिंघ जी था, किन्तु उन्हें प्यार से भानु
जी कह कर पुकारते थे। सिक्ख ने साईं जी के आदेश अनुसार वजीर खान को प्रतिदिन श्री
सुखमनी साहिब जी की बाणी सुनानी शुरू कर दी, जिससे खान साहब को बहुत राहत मिली, वह
इस ब्रहमज्ञानमय बाणी को सुनकर अपना दुख भूल जाते और एकागर हो स्थिर हो जाते। वह इस
सिक्ख के प्रति श्रद्धा रखने लगे। किन्तु एक दिन भाई भानु जी ने वजीन खान से कहा कि
कृप्या आप उन महापुरूषों से मिलें जिनकी यह रचना है, वह पूर्ण पुरूष हैं, हो सकता
है आप पर उनकी कृपा दृष्टि हो जाए तो शायद आपका रोग भी दूर हो जाए। वजीर खान ने
तुरन्त निश्चय किसा कि वह श्री अमृतसर साहिब जी जाएगा और गुरू दरबार में उपस्थित
होकर अपने रोग निवारण के लिए गुरू चरणों में प्रार्थना करेगा। इस प्रकार वजीर खान
पालकी में सवार होकर श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के दर्शनों के लिए श्री अमृतसर
साहिब जी पहुँचा। गुरूदेव उस समय सरोवर के निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रहे थे।
संगत सरोवर से मिटटी अथवा गारा टोकरियों में भर-भरकर बाहर निकालकर ला रही थी। इनमें
बाबा बुडढा जी भी सम्मिलित थे। कहारों ने वजीर खान को पालकी से निकालकर गुरू जी के
समक्ष लिटा दिया गया। वजीर खान गुरू जी से याचना करने लगाः मुझ गरीब पर भी दया करें
मैं बहुत कष्ट में हूँ। गुरू जी ने शरणागत की याचना बहुत गम्भीरता से सुनी और उसे
घैर्य रखने को कहा। इतने में सिर पर गारे की टोकरी उठाए बाबा बुडढा जी गुरू जी के
सामने से गुजरने लगे। गुरू जी ने उन्हें सम्बोधन करके कहाः आप इस अभ्यागत के कष्ट
निवारण के लिए कोई उपाय करें। बाबा बुडढा जी ने उत्तर में कहाः अच्छा जी ! और गारे
की टोकरी दूर फेंककर उसी प्रकार कार्य में व्यस्त हो गए। कुछ ही देर में वह फिर गारे
की टोकरी सिर पर उठाए चले आए।गुरू जी ने उन्हें फिर कहाः आप इनके उपचार के लिए कुछ
अवश्य करें। उत्तर में बाबा जी ने फिर कहाः अच्छा जी कुछ करता हूँ और वह पुनः सरोवर
का गारा लेने चले गए। इस बार गुरू जी ने उनको जैसे जी सँकेत किया उन्होंने टोकरी का
समस्त गारा वजीर खान के फूले हुए पेट पर बहुत वेग से पलट दिया। बहुत वेग से गारा
पेट पर पड़ते ही पेट के एक कोने में छेद हो गया और पेट में भरा मवाद बाहर निकल गया।
तुरन्त शैल्य चिकित्सक को बुलाकर उनके पेट में टाँके इत्यादि लगाकर उपचार किया गया।
घीरे-धीरे वह सामान्य अवस्था में आने लगे और कुछ ही दिनों में पूर्ण स्वस्थ होकर
गुरू जी का धन्यवाद करने लगे। वजीर खान के एक निकटवर्ती ने एक दिन बाबा बुडढा जी से
पूछाः आपको गुरू जी ने तीन बार वजीर खान का उपचार करने को कहा आपने उनकी आज्ञा पर
पहली बार गारा उन पर क्यों नहीं फैंका ? उत्तर में बाबा जी ने कहा किः गुरू जी
पूर्ण समर्थ हैं परन्तु वह अपने भक्तों को मान-सम्मान देते हैं। अतः हमने उनकी आज्ञा
अनुसार अपने दिल को प्रार्थना द्वारा प्रभु चरणों में जोड़ लिया था जब प्रार्थना
सम्पूर्ण हुई तो हमने सँकेत पाते ही गारा वजीर खान के पेट पर दे मारा था। हमारा
कार्य तो एक बहाना मात्र था। बरकत तो प्रार्थना और गुरूदेव के वचनों की थी।