11. दोआबा का चौधरी
श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के दरबार में एक दिन भाई पूरिया व भाई चूहड़ के नेतृत्व
में दोआबा क्षेत्र का चौधरी मँगलसेन आया। उसने गुरू जी के समक्ष विनती की कि कोई ऐसी
युक्ति बताएँ, जिससे हम लोगों का भी कल्याण हो जाए। इस पर गुरूदेव जी ने कहाः जीवन
में सत्य पर पहरा देना सीखो, कल्याण अवश्य ही होगा। यह सुनते ही चौधरी मँगलसेन बोलाः
यह कार्य असम्भव तो नहीं, किन्तु कठिन जरूर है। उत्तर में गुरूदेव जी ने कहाः मानव
जीवन में कल्याण चाहते हो और उसके लिए कोई मूल्य भी चुकाना नहीं चाहते। दोनों बातें
एक साथ नहीं हो सकती। कुछ प्राप्ति करने के लिए कुछ मूल्य तो चुकाना ही पड़ता है।
मँगलसेन गम्भीर हो गया और बोलाः यकायक जीवन में क्रान्ति लाना इतना सहज नहीं क्योंकि
हमारा अब तब स्वभाव परिपक्व हो चुका है कि हम झूठ के बिना नही रह सकते। गुरूदेव जी
ने सुझाव दियाः कि धीरे-धीरे प्रयास करो, जहाँ चाह वहाँ राह, यदि आप दृढ़ता से कोई
कार्य करें तो क्या नही हो सकता, केवल सँकल्प करने की आवश्यकता है। मँगलसेन सहमति
प्रकट करते हुए कहने लगाः इस कठिन कार्य के लिए कोई प्रेरणा स्त्रोत भी होना चाहिए।
जब हम डगमगाएँ तो हमें सहारा दे। गुरू जी ने युक्ति बताईः कि वह एक कोरी कॉपी सदैव
अपने पास रखें, जब कभी मजबूरीवश झूठ बोलना पड़े तो उस वृतान्त का विवरण नोट कर लें
और तदपश्चात सप्ताह बाद साधसंगत में सुना दिया करें, संगत कार्य की विवशता को
मद्येनजर रखते हुए उसे क्षमा करती रहेगी। मँगलसेन ने सहमति देकर वचन दिया कि वह ऐसा
ही आचरण करेगा।
बात जितनी सुनने में सहज लगती थी, उतनी सहजता से जीवन में अपनानी कठिन थी। अपने झूठ
का विवरण संगत के समक्ष रखते समय मँगलसेन को बहुत ग्लानि उठानी पड़ने की सम्भावना
दिखाई देने लगी। वह गुरू आज्ञा अनुसार अपने पास सदैव एक कोरी कॉपी रखने लगे, किन्तु
जब भी कोई कार-व्यवहार होता तो बहुत सावधानी से कार्य करते कि कहीं झूठ बोलने की
नौबत न आ जाए। इस सर्तकता के कारण वह प्रत्येक क्षण गुरू जी को सर्वज्ञ जानकर बात
करते और वह हर बार सफल होकर लौटते। घीरे-धीरे उनके मन में गुरू जी के प्रति अगाध
श्रद्धा-भक्ति बढ़ने लगी और वह लोगों में सत्य के कारण लोकप्रिय भी बन गए। सभी और से
मान-सम्मान मिलने लगा। जब प्रसिद्धि अधिक बढ़ गई तो उन्हें गुरू जी की याद आई कि यह
सब कुछ क्रान्तिकारी परिवर्तन तो गुरूदेव जी के वचनों को आचरण में ढालने का ही
परिणाम है। वह अपने सहयोगियों की मण्डली के साथ पुनः गुरू जी की शरण में उपस्थित
हुआ। गुरू जी ने झूठ लिखने वाली कापी माँगी। चौधरी जी ने वह कापी गुरू जी के समक्ष
रख दी। गुरू जी ने कहाः जो श्रद्धा विश्वास के साथ वचनों पर आचरण करेगा, उसके संग
प्रभु स्वयँ खड़े होते हैं, उसे किसी भी कार्य में कोई कठिनाई आड़े नहीं आती।