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1. जन्म

  • जन्मः सन 1563
    जन्म किस स्थान पर हुआः श्री गोइन्दवाल साहिब जी
    पिता जी का नामः श्री गुरू रामदास जी
    माता जी का नामः माता भानी जी
    पत्नि का नामः गँगा जी
    कितनी सन्तान थीः एक पुत्र
    सन्तान का नामः श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी
    समकालीन बादशाहः अकबर और जहाँगीर
    पाँचवें गुरू कब बनेः सन 1581
    सबसे मुख्य कार्यः धन्यधन्य श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी की बाणी सम्पादित करना
    गुरूबाणी किससे लिखवाईः भाई गुरदास जी से
    गुरूबाणी किस स्थान पर लिखवाईः श्री अमृतसर साहिब के श्री रामसर साहिब जी में
    श्री गुरू अरजन देव जी ने जब बाणी सम्पादित की, तब कितने अंग थेः 974 अंग
    श्री गुरू अरजन देव जी को सबसे महान एडिटर बोला जाता है, क्योंकि समस्त बाणी एकत्रित करके उसकी एडिटिंग की थी।
    दरबार साहिब श्री अमृतसर साहिब की नींव किससे रखवाई थीः साँईं मियाँ मीर जी
    श्री गुरू ग्रन्थ साहिब की का पहले क्या नाम रखा गयाः श्री पोथी साहिब जी
    श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी का पहला प्रकाश कब कियाः 1604, श्री अमृतसर साहिब जी
    श्री गुरू अरजन देव जी सिक्ख इतिहास के सबसे पहले शहीद हैं।
    शहीद कब हुएः 25 मई 1606
    शहीद किस स्थान पर हुएः लाहौर
    शहीदी स्थान पर गुरूद्वारे साहिब का नामः श्री डेरा साहिब जी, पाकिस्तान

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी का प्रकाश (जन्म) संवत 1620 की 3 बैसाख तदानुसार अप्रैल सन 1563 को श्री गोइँदवाल साहिब जी नामक स्थान पर श्री गुरू रामदास साहिब जी के गृह श्रीमती भानी जी के उदर से हुआ। वे श्री गुरू रामदास साहिब जी के सबसे छोटे तथा तीसरे पुत्र थे। बालक अरजन देव जी ने अपने नाना श्री गुरू अमरदास जी तथा पिता श्री गुरू रामदास जी, इन दो महान विभूतियों की छत्रछाया में अपना बचपन व्यतीत करने का सौभाग्य प्राप्त किया। बाणी के महारथी श्री गुरू अमरदास जी का सहज स्नेह पाकर अरजन देव जी कृतार्थ हुए। अरजन देव अपनी बाल-सुलभ चेष्टाओं से कभी अपनी माता को, कभी पिता को तथा कभी अपने नाना श्री गुरू अमरदास जी को हैरान एँव प्रसन्न करते रहते थे। बाल क्रीड़ाओं के दौरान प्रकट हुई अरजन देव जी की समता की भावना ने आगे चलकर समूची गुरू संगत को प्रभावित किया। एक बार नाना श्री गुरू अमरदास जी अपनी शैया पर घ्यानमग्न थे। तभी बाल अरजन अपने साथियों सहित प्राँगण में गेंद खेल रहे थे। सहसा गेंद उछली और गुरूदेव के आसन के समीप कहीं जा गिरी। इधर-उधर देखने के उपरान्त बाल अरजन के मन में विचार आया कि कहीं गेंद नाना जी के आसन पर न गिरी हो ? फिर क्या था, बालक अरजन ने गुरूदेव जी शैया तक उछलने का प्रयास किया। सुगठित शरीर का बालक अरजन ठीक ढँग से लपक नहीं पाया। शायद वह अपने नाना गुरू अमरदास जी की वह समाधि भँग नहीं करना चाहते थे।
बहुत सोचने के उपरान्त अरजन देव जी ने शैया पर पैर रखकर उछलकर शैया पर झाँकने का प्रयास किया किन्तु गुरूदेव जी का आसन डोल गया तभी गुरूदेव की योगनिंद्रा टूटी। उन्होंने मीठे वचनों में कहा कि अरे वह कौन विभूति है ! जिसने हमारी सारी की सारी सत्ता ही हिला दी है। बाल अरजन कुछ सहमकर थोड़ा पीछे हटे, परन्तु विशाल दिल के स्वामी, क्षमाशील और कृपालु नाना ने नन्हें, अरजन देव को बाँहों में समेट लिया और दुलार से कहा कि "अरजन" समय आयेगा जब तुम भी कोई महान कार्य करके दिखाओगे। जिससे मानव कल्याण होगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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