अहमदशाह अब्दाली दुर्रानी का दूसरा आक्रमण
दिसम्बर, 1748 ईस्वी अभी मीर मन्नू (मुईदल-उल्मुल्क) पँजाब की दशा ठीक करने में ही
लीन था कि अहमदशाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण की सूचना उसे मिली। तभी मीर मन्नू ने
केन्द्रीय सरकार दिल्ली को सहायता के लिए लिखा परन्तु वहाँ से कोई सहायता न आई। इस
पर मीर मन्नू अपने बलबूते काफी सेना लेकर अहमदशाह अब्दाली का सामना करने के लिए आगे
बढ़ा। उसकी सहायता के लिए अदीना बेग सेनापति जालन्धर और मुहम्मद अली खान सेनापति
स्यालकोट भी आ गए। परन्तु यह सेना अब्दाली की सेना के बराबर न थी, अतः दो महीने छोटी
छोटी झड़पें होती रहीं। अन्त में मीर मन्नू ने पराजय स्वीकार कर ली। इस पर दोनों
शक्तियों के बीच निम्नलिखित धराओं को मद्देनज़र रखकर संधि कर ली गईः मीर मन्नू के
चार महल अर्थात स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरँगाबाद अब अब्दाली का क्षेत्र माना
जायेगा परन्तु शासन व्यवस्था मीर मन्नू करेगा, जिसके बदले चौदह लाख रूपये वार्षिक
लगान के रूप में अब्दाली को देने का वचन दिया। सिन्धु नदी के पार के आदेशों को
अफगानिस्तान के राज्य का अंग माना जायेगा। नोट: दिल्ली राज्य का विश्वास मीर मन्नू
पर से हट गया क्योंकि वह अहमदशाह अब्दाली से मिल गया था। दिल्ली के मँत्री सफदरजँग
के विरोध के कारण मीर मन्नू को समय पर सहायता न मिली थी और यही कारण उसकी पराजय का
भी था। मीर मन्नू और उसकी सेना की लाहौर नगर से अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए सिक्खों
ने नवाब कपूर सिंघ जी के नेतृत्त्व में श्री अमृतसर साहिब जी के पुराने वैभव को
वापिस लौटाने के लिए कई नवनिर्माण के कार्य किए और वे अब होली, दीवाली और वैशाखी के
पर्वों को यहाँ सम्मेलन रूप में मनाने लगे। इस बीच उन्होंने सिक्खी प्रचार पर बहुत
बल दिया और बहुत से युवकों को अमृतधारण करवाकर सिंघ सजाया जिससे ?दल खालसा? की गिनती
में क्रान्तिकारी वृद्धि हुई।
अहमदशाह अब्दाली का भारत पर तीसरा आक्रमण
अहमदशाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण के परिणाम में हुई संधि की शर्तों के अनुसार मीर
मन्नू ने ?चार महल? का चौदह लाख रूपया वार्षिक लगान के रूप में अहमदशाह अब्दाली को
देने का वचन दिया था, जो पूरी तरह नहीं किया गया।
सन् 1750 में तकाज़ा करने पर भी
मीर मन्नू ने वायदा पूरा नहीं किया। कौड़ा मल की मुलतान विजय के पश्चात् तो वह बाकी
की रकम चुकता करने के लिए पूरी तरह मुकर गया क्योंकि उसे अपनी शक्ति पर भरोसा बढ़ गया
था। अतः अब्दाली ने तीसरा आक्रमण कर दिया। 6 मार्च सन् 1752 में महमूद बूटी नामक
गाँव के मैदान में घमासान युद्ध प्रारम्भ हुआ। रणभूमि में सत्तर हजार सेना मीर मन्नू
की तरफ से लड़ रही थी। इसमें कौड़ामल ने सिक्खों को भी सम्मिलित कर लिया था। कौड़ामल
हाथी पर सवार होकर अपनी सेना का नेतृत्त्व कर रहा था कि उसके हाथी का पाँव एक बँकर
में गहरा धँस गया, जिससे हाथी सन्तुलन खो बैठा और पलट कर गिर गया। शत्रु सेना ने इस
अवसर का लाभ उठाकर कौड़ामल का सिर काट लिया। बस फिर क्या था, मुगलों का साहस टूट गया,
वे पीछे हटने लगे। अन्त में लाहौर के किले में आकर शरण ली। जब सिक्खों ने कौड़ामल की
वीर गति देखी तो उन्होंने पीछे हटते हुए मुगलों का साथ छोड़ देने का निर्णय लिया
परन्तु इस बीच सरदार सुक्खा सिंघ माड़ी कम्बों अब्दाली की खोज करता हुआ रणक्षेत्र
में वीरगति पा गया। इस पर सिक्खों ने रणभूमि से रण सामग्री इक्ट्ठी की और अपने
रास्ते हो लिए। अफगान सेना ने लाहौर नगर को लूटना और बर्बाद करना शुरू कर दिया। ऐसा
होता देखकर मीर मन्नू ने सफेद झण्डा लहरा दिया। युद्ध रूक गया। इस पर अहमदशाह ने
मीर मन्नू को अपने शिविर में आमँत्रित किया। मीर मन्नू को अब्दाली ने पूछा कि बताओ
तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए ? उत्तर में मीर मन्नू ने बहुत धैर्य से कहा कि
जैसे एक विजयी सम्राट एक पराजित व्यक्ति से करता है। इस पर उसने पुनः पूछा, यदि तुम
विजयी होते मैं पराजित तो तुम मेरे साथ कैसा व्यवहार करते ? उत्तर में मीर मन्नू ने
कहा कि मैं तुम्हारा सिर अपने बादशाह को दिल्ली भेज देता। अहमद शाह मीर मन्नू का
साहस देखकर आश्चर्य में पड़ गया। फिर उसने बहुत गम्भीर मुद्रा में कहा कि यदि मैं
तुझे क्षमा कर दूँ तो तुम क्या करोगे ? उत्तर में मीर मन्नू ने कहा कि जिसे मैं अपना
बादशाह समझता था, उसने मेरी कठिन समय में सहायता नहीं कि यदि तुम मुझे क्षमा कर दो
तो मैं सदैव के लिए तुम्हें अपना बादशाह समझूँगा। इस उत्तर से सन्तुष्ट होकर अहमद
शाह अब्दाली ने कहा कि ठीक है, मैं तुम्हारी वफादारी से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। यदि
तुम मेरे वफादार बन जाओ तो मैं तुम्हें मुँह बोला बेटा मानकर लाहौर का पुनः
राज्यपाल नियुक्त करता हूँ। अब तुम अफगानिस्तान साम्राज्य के सूबेदार हुए।