5. उत्तराधिकारी घोषित
7 अक्तूबर, 1763 ईस्वी को नवाब कपूर सिंह जी का श्री अमृतसर साहिब जी में निधन हो
गया। उनको एक सैनिक अभियान में गोली लग गई थी। उन्होंने घायल अवस्था में खालसे का
सम्मेलन बुलाया, उसमें उन्होंने सभी प्रमुख व्यक्तियों के समक्ष सरदार जस्सा सिंह
आहलूवालिया को बुलाकर दशम पहिशाह श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी फौलादी चोब
प्रदान की। जस्सा सिंह ने भी उन्हें खालसा पँथ की सेवा निभाने का वचन दिया। वैशाखी
वाले दिन श्री अमृतसर अकाल तख्त साहिब जी के सामने ‘सरबत खालसा’ सम्मेलन ने नवाब
कपूर सिंह जी के लिए गुरू चरणों में अरदास की। तद्पश्चात सरदार जस्सा सिंह
आहलूवालिया को हर दृष्टि से योग्य जानकर, नवाब साहिब के स्थान पर खालसा का राजसी और
धार्मिक जत्थेदार नियुक्त कर दिया और उनको नवाब की उपाधि से सम्मानित किया। इस
प्रकार माता सुन्दर कौर जी और नवाब कपूर सिंघ जी की भविष्यवाणी प्रकट होकर खूब रँग
लाईं। रामराहोणी के छोटे किले को मीर मन्नू ने धवस्त कर दिया था। सिक्खों ने इसका
पुर्ननिर्माण करने के लिए, इस सारे कार्य को जत्थेदार सरदार जस्सा सिंह इचोगल को
सौंप दिया। उसने अपने सभी जवानों को इस कार्य के लिए लगा दिया। यह उस समय सिक्खों
की ‘इंजिनियर कोर’ थी। इस जत्थे के सभी जवान कारीगर टैकशियन थे। उन्होंने बहुत चाव
से धवस्त किले का पुर्ननिर्माण किया और उसको नया नाम दिया ‘रामगढ़’। रामगढ़ की छटा
देखते ही बनती थी, उसे देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि कभी यह खण्डर था। अतः सरबत
खालसा सम्मेलन में जस्सा सिंह इचोगल को उसके कर्त्तव्यों के प्रति सम्मानित करते
समय ‘रामगढ़िया’ शब्द से अलँकृत किया गया, जिससे वह आगामी जीवन में इचोगल के स्थान
पर जस्सा सिंह रामगढ़िया कहलाए। इन्हीं दिनों लाहौर में स्थित राज्यपाल मुशद बेगम
मीर मन्नू की विधवा ने लाहौर से विशाल सेना, अजीज वेग और बखशिंदा बेग के नेतृत्त्व
में सिक्खों को अमृतसर से खदेड़ने के लिए भेजा। सँयुक्त खालसा दल के जत्थेदार जस्सा
सिंह आहलूवालिया ने इस आक्रमण का ऐसा मुँह तोड़ जवाब दिया कि मुगल सेना भाग खड़ी हुईं।