27. शाहआलम के नाम पत्र
अस्थिरता एवँ मानसिक तनाव में फँसे शाहआलम को सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने एक
पत्र लिखा। यह पत्र सन् 1768 ईस्वी की जनवरी में लिखा गया प्रतीत होता है। इसमें
आहलूवालिया जी ने शाहआलम से आग्रह किया था कि यदि वह दिल्ली लौट आए तो सारी
राज्यव्यवस्था उसे फिर से प्राप्त हो जाएगी। इसके उत्तर में शाहआलम ने अपने दूतों
द्वारा कहलवाया कि वह सदा दिल्ली पहुँचने की बात सोचता रहता है किन्तु यह तभी सम्भव
है यदि जस्सा सिंह आहलूवालिया अपने अन्य सरदारों सहित उसका साथ दें। इस प्रकार
राज्य में शान्ति स्थापित हो जाएगी और उसके शत्रु घबरा जाएँगे किन्तु मैं इस बात से
परेशान हूँ कि सिक्ख सरदार सँगठित नहीं हैं और लगभग प्रतिदिन एक न एक सरदार की तरफ
से नई चिट्टी आ जाती है। ऐसी चिट्ठियों की सँख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है,
इसलिए सिक्ख सरदार एकत्रित होकर एक शक्तिशाली सँगठन बनाएँ और तब एक साँझा आवेदन भेजे,
जिस पर सभी सिक्ख सरदारों की मोहरें लगी हों। ये बातें गोपनीय बनी रहें। अतः आप अपने
किसी विश्वासपात्र को मेरे पास भेज दो। तदनन्तर मैं सेना सहित दिल्ली के समीप
पहुँचकर और आपको साथ लेकर राजकाज सम्भाल लूँगा। इस पत्र व्यवहार से ज्ञात होता है
कि सरदार जस्सा सिंह जी का यह पत्र केवल व्यक्तिगत ही था। इस सम्बन्ध में खालसा पँथ
का कोई गुरमता पारित नहीं हुआ था क्योंकि भिन्न-भिन्न सरदारों के पत्रों का भाव भी
लगभग एक जैसा ही था। इसी कारण शाहआलम ने सुलतान उल कौम सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया
जी से निवेदन किया था कि पँथ की ओर से एक सँयुक्त पत्र लिखा जाए। इन्हीं दिनों
नजीबुद्दौला को मराठा सरदार तकोली होलकर से संधि करने का अवसर प्राप्त हो गया। वह
अपने पुत्र जाबिता खान का हाथ तकोजी को थमाकर, 31 अक्तूबर, 1770 ईस्वी को परलोक
सिधार गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् शाहआलम की घबराहट और अधिक बढ़ गई। शाहआलम सन्
1710 ईस्वी में अँग्रेजों के सँरक्षण में था, किन्तु वे उसे दिल्ली पहुँचाने में
असमर्थ थे, जाटों और राजपूतों से भी उसे अपनी इच्छापूर्ति की अधिक सम्भावना न थी।
इन दिनों सिक्ख भी अपने कार्यों में अत्याधिक व्यस्त थे। ऐसी परिस्थितियों में
शाहआलम ने सन् 1771 ईस्वी में मराठों से साँठ-गाँठ कर ली और वह 10 अप्रैल, 1771
ईस्वी को इलाहाबाद से चलकर 6 जनवरी, 1772 को दिल्ली पहुँच गया।