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22. पँजाब की राजधानी लाहौर नगर पर
सिक्खों का कब्जा
जब अहमदशाह अब्दाली पँजाब से अपने सातवें आक्रमण के बाद खाली हाथ लौट गया तब सिक्खों
ने 13 अप्रैल, 1765 ईस्वी को श्री अमृतसर में वैशाखी पर्व पर ‘सरबत खालसा’ सम्मेलन
बुलाया और उसमें प्रस्ताव रखा कि इस बार लाहौर नगर पर खालसा को कब्जा कर लेना चाहिए।
गुरमता सर्वसम्मति से पारित हो गया। इस कार्य को क्रियान्वित करने के लिए दल खालसा
के अध्यक्ष सरदार जस्सा सिंह जी ने अपने सभी सहयोगियों को साथ लेकर 16 अप्रैल को
लाहौर नगर पर धावा बोल दिया। उस समय उनके साथ लहिणा सिंह, गुलजार सिंह भँगी, जै
सिंह, हरी सिंह, झंडा सिंह, गंडा सिंह, शोभा सिंह इत्यादि थे। उन्होंने बागवान पुरा
के मेहर मुलतान, गुलाम रयूल, अशरफ, चन्नू तथा अराइयों की सहायता से किले की दीवार
में सेंध लगा ली, जिसके कारण भँगी मिसल के सरदार बहुत आसानी से किले में घुस गए। उस
समय अब्दाली द्वारा नियुक्त लाहौर का हाकिम काबलीमल डोगरा सेना भर्ती करने के लिए
लाहौर से बाहर जम्मू क्षेत्र में गया हुआ था। अतः उसकी अनुपस्थिति में उसके भाँजे
तथा बख्शी अमीर सिंह ने अगली सुबह थोड़ी देर तक सिक्खों का सामना किया किन्तु वे दोनों
शीघ्र ही बन्दी बना लिए गए। इस प्रकार पँजाब की राजधनी लाहौर नगर पर सिक्खों की
प्रभुसत्ता स्थापित हो गई। भँगी मिसल के सरदार लहिणा सिंह और गुज्जर सिंह तथा
कन्हैया मिसल के सरदार शोभा सिंह को लाहौर पर अधिकार स्थायी रूप में सौंप दिया गया।
कुछ मनचले सैनिकों ने लाहौर नगर को लूटने का कार्यक्रम बनाया परन्तु जैसे ही इस बात
की भनक स्थानीय महानुभावों को लगी तो वे अपना एक प्रतिनिधिमण्डल लेकर पँथ के नेता
सरदार जस्सा सिंह जी के पास आए और उन्होंने विनती कि आप जी मनचले युवकों की ताड़ना
करें और लाहौर नगर को लूटने से बचा लें। इस पर सरदार जस्सा सिंह जी ने तुरन्त आदेश
जारी किया और अपने जवानों को सम्बोध्न करते हुए कहा कि हमारे में और मुगल अथवा
अफगान लोगों में क्या अन्तर रह जाएगा, जबकि हम भी धन के लोभ में नीच प्रवृत्ति का
नँगा नाच करेंगे। उन्होंने कहा कि वास्तव में लाहौर की जनता को आज स्वतन्त्रता मिली
है, वे लोग हमारे नागरिक हैं। हमें उनके माल अथवा जान की सुरक्षा की जमानत देनी है।
तद्पश्चात स्थानीय सहजधारी बिशन सिंह तथा महाराज सिंह ने बताया कि लाहौर नगर को
पुरातन सिक्ख ‘कोठा गुरू का’ कहकर बुलाते थे क्योंकि यहाँ चौथे गुरू श्री गुरू
रामदास साहिब जी का प्रकाश (जन्म) हुआ है। अतः इसकी रक्षा करना हर सिक्ख का
कर्त्तव्य बनता है। लाहौर नगर की विजय से लगभग सारा पँजाब सिक्खों के अधिकार
क्षेत्र में आ गया।
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