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2. माता सुन्दरी जी के पास

श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी के ज्योति-जोत समा जाने के पश्चात् माता सुन्दरी जी दिल्ली में निवास करने लगी। जस्सा सिंह के जन्म के उपरान्त उनकी माता को भी कई बार इस बात का ध्यान आया कि वह माता सुन्दर कौर जी से बेटे को मिलवाएँ। दैवयोग से उसके भाई बदर सिंह ने सन् 1723 ईस्वी में दिल्ली यात्रा का कार्यक्रम बनाया। वह अपने साथ जस्सा सिंह और उसकी माता को भी साथ ले गया। माता सुन्दर कौर जी बालक जस्सा सिंह और उसकी माता के सुरीले कण्ठ से गुरवाणी का कीर्तन सुनकर मुग्ध हो गईं। अतः उन्होंने माँ पुत्र को बदर सिंह से आग्रह करके अपने पास ठहरा लिया। प्रतिभावान जस्सा सिंह ने माता जी का मन मोह लिया और माता जी की जी-जान से सेवा की, जिस कारण जस्सा सिंह उनकी विशेष कृपा का पात्र बन गया। सरदार बाघ सिंह स्वयँ निस्सन्तान था। अतः वह अपनी बहन के पुत्र जस्सा सिंह के प्रति अत्यन्त स्नेह करता था और जस्सा सिंह के माध्यम से सन्तान सुख का मानसिक सन्तोष प्राप्त करने की अभिलाषा रखता था। सन् 1729 ईस्वी में बाघ सिंह एक बार फिर दिल्ली गया। उसने बड़े नम्रतापूर्ण शब्दों में माता सुन्दर कौर जी से अपनी बहन और भाँजे को पँजाब लौटने के लिए आज्ञा देने की प्रार्थना की। यद्यपि माता सुन्दरी जी अति श्रद्धावान माँ-पुत्र से विछोह नहीं चाहती थी। तब भी उन्होंने उन दोनों को पँजाब जाने की सहमति दे दी। विदाई के समय माता जी ने जस्सा सिंह को उपहार में एक कृपाण, एक गुरज गदा, ढाल, कमान, तीरों से भरा भक्षा तर्कश, एक सैनिक पोशाक और एक चाँदी की बनी चौब प्रदान करके आशीर्वाद दिया कि समय आयेगा जब तेरे नाम अनुसार तेरा यश चारों ओर फैलेगा। कालान्तर में ईश्वर की कृपा से माता सुन्दर कौर साहिब जी की आशीष खूब फलीभूत हुई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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