17. अब्दाली के सेनापति जहान खान की
पराजय
अफगानिस्तान में बैठे अहमदशाह अब्दाली को पँजाब की ओर से बुरे समाचार प्राप्त हो रहे
थे। उसे बार-बार उसके नियुक्त फौजदारों और अधिकारियों की धुनाई की जब सूचनाएँ मिलीं
तो उसने अपने सेनापति जहान खान को विशाल सेना देकर पँजाब भेजा ताकि वह सिक्खों का
दमन कर सके। नवम्बर, 1763 ईस्वी को दीवाली के शुभ समागम में ‘सरबत खालसा’ सम्मेलन
में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि सरहिन्द नगर का शीघ्र से शीघ्र पतन कर देना
चाहिए। तद्पश्चात श्री दरबार साहिब जी में आधारशिला रखकर निर्माण कार्य प्रारम्भ
किया जाएँ। तभी गुप्तचर विभाग ने सूचना दी कि अब्दाली का सेनापति विशाल सेना लेकर
पँजाब पहुँचने वाला है और वह जम्मू के राजा रणजीत देव से सहायता प्राप्त करेगा। यह
समाचार प्राप्त होते ही सभी कार्य बीच में ही छोड़कर सरदार जस्सा सिंह अन्य सरदारों
को साथ लेकर तुरन्त जत्थेदार चढ़त सिंह सुकरचकिया की सहायता के लिए पहुँच गया।
पश्चिमी पँजाब का भूभाग सरदार चढ़त सिंह की मिसल का क्षेत्र था। सिक्खों ने एकत्रित
होकर उसे रास्ते में ही घेर लिया और ऐसा धावा बोला कि जहान खान की सेना तितर-बितर
हो गई और जहान खान का घोड़ा मारा गया। वह बड़ी कठिनाई से प्राण बचाकर रोहतास के किले
में पहुँच पाया। इस भगदड़ में उसका एक विशेष सहयोगी, युद्ध की सभी सामग्री और कई
सगे-सम्बन्धी- क्या स्त्रियाँ क्या पुरूष, सभी सिक्खों के हाथ आ गए। ऐसी स्थिति में
जहान खान की बेगम ने सरदार चढ़त सिंह जी से प्रार्थना की कि इस समय उनका पर्दा और
इज्जत सिक्ख सरदारों के हाथों में है। सरदार जस्सा सिंह को भी सूचित किया गया कि
जहान खान का तोशखाना तथा बहुत से आभूषण भी इन्हीं स्त्रियों के पास हैं किन्तु उसने
उत्तर भिजवाया कि खालसा महिलाओं के पास रखे माल को बिल्कुल भी हाथ नहीं लगाना।
उन्होंने बेगम साहिबा को साँत्वना देते हुए कहा कि आप बिल्कुल भी चिन्ता न करें हमारा
आपसे कोई वैर नहीं है। आपकी जान और माल की पूरी तरह सुरक्षा की जाएगी। इस पर बेगम
ने जम्मू जाने की इच्छा प्रकट की। सरदार चढ़त सिंह शुकरचकिया ने उसे पूरे मान-सम्मान
के साथ वहाँ पहुँचवा दिया, जहाँ वह जाना चाहती थीं।